सन्तो! गगन मण्डल कर वासा कबीर
पाती तोरे मालिनी कबीर
सैलानी भँवरो रम रह्यो री कबीर
सन्तो घर में झगड़ा भारी कबीर
हमन हैं इश्क़ मस्ताना कबीर
साधो देखो जग बौराना कबीर
ऐसी है दीवानी दुनिया
तज तज रे भँवरा कमलवास कबीर
दीनदयाल भरोसे तेरे कबीर
साहेब है रंगरेज चुनरी मेरी
सन्तो जग को कौ समझावै
बालम आओ हमारे गेह
संतो सहज समाधि भली कबीर
मत बाँधो रे गठरिया अपजस की
अपने कर्म की गति मैं क्या जानूँ
जो जन ले खसम का नाऊँ कबीर
तू तो राम सुमिर जग लड़बा दे॥
या विधि मन को लगावै कबीर भजन
दिन नीके बीते जाते हैं कबीर
हम ना मरें, मरिहै संसारा कबीर
हौं वारी मुख फेर पियारे कबीर
अपने साहिब से मिल रहिये॥
पड़े अविद्या में सोने वालों कबीर
बावरे ते ज्ञान बिचार न पाया कबीर
हम कूकर तेरे दरबार कबीर
मेरे मन कब भजिहो सतनाम कबीर
पानी में मीन पियासी मोहे
मोको कहाँ तू ढूँढें रे बन्दे कबीर
देव संसै गाँठ न छूटै कबीर
साधो ये मुर्दों का गाँव कबीर
हरि के नाम के व्यापारी कबीर
ऐसे लोगन सों क्या कहिये कबीर
तू मेरो मेरु परबत स्वामी
गोबिन्द हम ऐसे अपराधी कबीर
प्रभु मैं गुलाम, मैं गुलाम कबीर
तड़पे बिन बालम मोरा जिया कबीर
लगन बिन जागे ना निर्मोही कबीर
मन दे राम लिया है मोल कबीर
लोगा भर्म न भूलो भाई कबीर
माथे तिलक हथ माला बाना कबीर
अब तब जब कब तू ही तू ही कबीर
हमारे गुरु मिले ब्रह्मज्ञानी कबीर
राम भजा सो जीता जग में कबीर
सन्तो भाई आई ग्यान की आँधी कबीर
आऊंगा ना जाऊँगा मैं मरूंगा कबीर
दीन (धर्म) बिसारियो रे दीवाने।
हमारे तीरथ कौन करे..
हरि बिन कौन सहाई मन का।
सैंया निकस गये रे मैं ना लड़ी थी।
क्या गुमान करना है
जग में गुरु बिन भर्म अंधेरी
बिन सद्गुरु नर फिरत भुलाना।
जहाँ से आयो अमर वह देसवा
दुल्हनि गावहुँ मंगलाचार
माया महा ठगनी हम जानी।
आज मेरे भाग जागे।
हर का बिलोवना, बिलोवो मेरे भाई।
मैं तो उन सन्तों रा दास
मोरा हीरा हेराय गयो कचरे में
राम निरंजन न्यारा रे।
दुनिया दरसन का है मेला।
अवधू! भजन भेद है न्यारा॥
अमरपुर ले चलो हो सजना॥
रस गगन गुफा में अजर झरे॥
रहना नहिं देस बिराना है।
कित जाइये घर लाग्यो रंग
साहेब तेरा भेद न जाने कोई॥
मन तोहि केहि विधि कर समुझाऊँ।
सुमिरन बिन गोता खाओगे॥
अजर अमर इक नाम है सुमिरन जिहि आवै॥
भजन कर निसदिन टूटै न तार॥
रमैया की दुल्हन लूटल बजार
एक अचम्भा देखा रे भाई!
क्या माँगू कुछ थिर न रहाई।
क्या सोवो सुमिरन की बेरिया॥
तूने हीरा सो जन्म गँवायो
साधो हर में हरि को देखा॥
हंसा छोड़ कर्म की आशा॥
अपुनपो आपहि में पायो।
साधो ! जीवत ही करो आशा॥
मन लागो मेरो यार फकीरी में।
नर ते क्या पुराण पढ़ि सुनि कीन्हा।
जग में तुम सम कौन अनारी।
तेरा जन एक साधु है कोई।
गोविन्द तेरी महिमा अपरम्पार॥
जो कोई या विधि प्रीत लगावे
भर्म में भूल रहा संसार॥
जन्म धर जो न कियो सत्संग।
एक बिनु दूसरा दृष्टि आवे नहीं
जग में या विधि साधु कहावै।
घूंघट के पट खोल रे
बहुरि नहि आवना यह देस॥
अकथ कहानी पीव की कछु कहत न आवे।
अब हम आनन्द के घर पाये॥
साधो राम बिना कछु नाहीं
कित जाइये घर लाग्यो रंग।
गुरुदेव बिन जीव की कल्पना ना मिटै
जो कोई या विधि प्रीत लगावे।
भर्म में भूल रहा संसार॥
एक बिनु दूसरा दृष्टि आवे नहीं
घूंघट के पट खोल रे
बहुरि नहि आवना यह देस॥
रमैया की दुल्हन लूटल बजार॥
पानी बीच बतासा संतो
अवसर बहुत भलो रे भाई!
एक दिन जाना होगा जरूर॥
अब कोई खेतिया मन लावै॥
सन्तो! सद्गुरु अलख लखाया।
चदरिया झीनी रे झीनी
ना जाने तेरा साहेब कैसा है
मन फूला फूला फिरे जगत में
झगरा एक निबेरो राम।
यम ते उलटि भये हैं राम।
हम तो एक एक करि जाना
सबद सबद बहु अंतरा, सार सबद चित देय।
दरसन दे ठाढ़ दरबार
भजो रे भैया राम गोविन्द हरी।
अब मैं भूला रे भाई।
डगमग छाड़ि दे मन बौरा।
निसदिन खेलत रही सखियन संग
मैं केहि समुझावौ सब जग अन्धा
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले
जन्म तेरा बातों ही बीत गयो कबीर
प्रीत लगी तुम नाम की
मन मौला जाने गुजर गये गुजरान॥
राम बिनु तन को ताप न जाई।
संतन के संग लाग रे
बनाय देई मेरे कारीगर ने
कैसो खेल रच्यो मेरे दाता
इस तनधन की कौन बढाई।
कर गुजरान गरीबी में
सन्तो कुण आवे रे कुण जाय।
कौन जाने कल की जग में खबर नहीं पल की।
क्या लेकर आया तू जग में क्या लेकर तू जायेगा।
भला हुआ मोरी गगरी फूटी
अब मैं अपने राम को रिझाऊँ॥
अनगाढ़िया देवा कौन करे तेरी सेवा॥
अरे दिल ग़ाफ़िल गफलत मतकर।
उड़ जा हंस अकेला........
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, तेरे दया धर्म...
गोविन्दो गायो नहीं रे, कईं कमायो बावरे
जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी
जोबन धन पावणा दिन चारा।
गुरु दाता मैंने अवगुण बहुत किया।॥
इस तन धन की कौन बढाई।
मेरे मन में तो यही बड़ो चाव सन्तन को देखूं आवतो।
डर लागे और हाँसी आवै
जाग पियारी अब का सोवे।
मन की तरंग मार लो
निंदो निंदो मोको लोग निंदो
भाई रे दुई जगदीश कहाँ ते आया
भर्म में भूल रहा संसार॥
भूले मन समुझ के लाद लदनिया॥
मन को चीन्हो रे नर भाई ।
मन रे तन कागद का पुतला।
मन रे नेकी कर ले
राम सुमिर पछतायेगा मन॥
जरा हल्के गाड़ी हांको
नींद से अब जाग बंदे
रामरस पीया रे जेहि रस बिसर गए रस और
मुस मुस रोवे कबीर की माई।