🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Saheb Hai Rangrez Chunar Meri Rang dari
साहेब है रंगरेज चुनरी मेरी रंग डारी
स्याही रंग छुड़ाए के रे दियो मजेटा रंग।
धोए से छूटे नहीं रे दिन दिन होत सुरंग॥
भाव के कुण्ड नेह के जल में प्रेम रंग देई बोर।
दुःख देह मैल लुटाई देई रे खूब रंगी झकझोर॥
साहेब ने चुनरी रंगी रे प्रीतम चतुर सुजान।
सबकुछ उन पर वार दूँ रे तन मन धनऔर प्राण॥
कहे कबीर रंगरेज पियारे मुझ पर हुए दयाल।
शीतल चुनरी ओढ़के रे भई हूँ मैं मगन निहाल॥
कबीर दास जी इस पद में कहते है......
श्री सद्गुरु साहेब रुपी रंगरेज ने मेरे अन्तःकरण रुपी कपड़े को भक्ति रुपी रंग में रंग दिया है।
स्याही रंग यानी सांसारिक रंग छुड़ाकर मजीठा रंग माने भक्ति रुपी रंग में रंग दिया है।
यदि एक बार किसी के भक्ति रुपी रंग लग गया फिर इसे कोई कितना ही धोकर छुड़ाना चाहे परन्तु यह दिनों-दिन ज्यादा ही चढ़ता है।
जैस प्रह्लाद भक्त को हिरण्यकशिपु ने इस रंग को छुड़ाने का बहुत प्रयत्न किया लेकिन प्रह्लाद ज्यों ज्यों ही भक्ति रंग में सराबोर होता गया।
सांसारिक रंग तो दुःख पड़ने पर या और किसी भी वजह से छूट जाता है परन्तु भक्ति रंग किसी भी कर नहीं छूटता।
भाव रुपी कुण्ड भीतर नेह रुपी जल में प्रेम रंग मिला दिया है। जिससे देह का अशुभ कर्म रुपी मैल सब दूर हो गया है।
भाव ही सर्वस्व है, भाव ही आधार है।
भाव से भज ले इन्हें तो भवसागर से बेड़ा पार है॥
भाव वाले भक्त का भगवान् पर भी भार है।
इसलिए परब्रह्म का, होता यहाँ अवतार है॥
भाव बिना बाजार में, वस्तु मिले न मोल।
भाव बिना हरि क्यों मिले भाव सहित हरि बोल॥
मेरे प्रीतम,चतुर श्री गुरुदेव ने इस चुनरी को भक्ति रंग में रंगा है। ऐसे श्री गुरु देव को मैं अपना सर्वस्व न्योछावर कर दूँ वो भी कम ही है,इतना उपकार किया है।
कबीरदास जी कहते हैं मेरे प्यारे सद्गुरु रुपी रंगरेज ने मुझ दास पर बड़ी दया की है।सांसारिक दुःख रुपी धूप में मुझे उन्होंने शीतल अर्थात् शान्ति देकर मुझे निहाल कर दिया।
कबीर भजन Kabeer Bhajan
श्री सद्गुरु देव भगवान् की जय हो
जय श्री गुरु महाराज जी की🙏🏻🙏🏻
🎙️शुभा मुद्गल Shubha Mudgal