🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Gobind Ham Aise Apraadhi Kabeer
कबीर भजन गुरबानी Gurbaani
गोबिन्द ! हम ऐसे अपराधी॥
जिन प्रभु जीउ पिण्ड था दिया।
तिसकी भाव भक्ति नहीं साधी॥
हे गोबिंद! हम ऐसे अपराधी हैं कि जिन प्रभु ने हमें शरीर, प्राण दिये उन प्रभु से हमनें कभी न प्रेम किया न ही उनकी भक्ति!
कवन काज सिरजे जग भीतर,
जन्म कवन (कौन) फल पाया।
भवनिधि तरन तारन चिंतामनि,
इक निमख न एह मन लाया॥
किस काम के लिए हम जगत में पैदा हुए? जन्म लेके हमने क्या कमाया? संसार-समुद्र से पार करने वाले, सब चिन्ता हरने वाले चिन्तामणि प्रभु के चरणों में हमने एक पल भर के लिए भी चित्त नहीं जोड़ा।
पर धन पर तन पर की निंदा,
पर अपबाद न छूटै॥
आवागवन होत है पुनि पुनि,
इह परसंग न टूटै॥
हे गोबिंद! पराये धन की लालसा, पराई स्त्री की कामना, पराई चुग़ली, दूसरों से बैर-विरोध– ये विकार दूर नहीं होते, इसलिए बार-बार जन्म-मरण का चक्कर (हमें) मिल रहा है और यह कहानी कभी ख़त्म ही नहीं होती।
जिन घर कथा होत हर सन्तन,
इक निमख न कीनो मैं फेरा।
लम्पट चोर दूत मतवारे,
तिन संग सदा बसेरा॥
जिन घर सत्संग (हरिकथा) होती है, वहाँ मैं एक पलक के लिए भी फेरा नहीं मारता अर्थात् नहीं जाता। पर विषयी, चोर, बदमाश, शराबी- इनके पास मैं हमेशा डेरा डाले रहता हूँ।
काम क्रोध माया मद मत्सर,
ऐ संपत मो माहीं।
दया धर्म अरु गुर की सेवा,
ऐ सुपनंतरि नाहीं॥
काम, क्रोध, माया, मोह, अहंकार, ईर्ष्या- मेरे पल्ले, बस! यही धन है। दया, धर्म, सद्गुरु की सेवा- मुझे इनका विचार कभी सपने में भी नहीं आया।
दीनदयाल कृपाल दामोदर,
भगत वत्सल भयहारी।
कहत 'कबीर' भीर जन राखहुँ,
हरि सेवा करउ तुम्हारी॥
कबीर कहते है: हे दीनों पर दया करने वाले! हे कृपालु! हे दामोदर! हे भक्तों से प्यार करने वाले! हे भय हरण! मुझे इन विकारों की भीर (पीड़ा) से बचा लो, मैं (नित्य) आपकी सेवा बंदगी करूंगा।
🚩श्री निरंजनी अद्वैत आश्रम भाँवती🙏🏻
🎙️सरबजीत सिंह Sarabjeet Singh