🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Ram Niranjan Nyara Re Kabeer
राम निरंजन न्यारा रे।
अंजन सकल पसारा रे॥
निरंजन= माया रहित परमतत्त्व। अंजन = माया
अर्थ- कबीर कहते हैं कि यह समस्त संसार माया का ही पसारा है। माया रहित राम समस्त जगत से परे एव भिन्न है।
अंजन उत्पति ओंकार अंजन,
अंजन मांगे सब विस्तार।
अंजन ब्रह्मा शंकर इन्द्र,
अंजन गोपी संगी गोविन्द रे॥
ओंकार की उत्पत्ति माया से है, माया ने ही इन विभिन्न नाम-रूपो मे विस्तार किया है। ब्रह्मा, शकर, इन्द्र तथा गोपियों के साथ रहने वाला कृष्ण सभी कुछ माया ही है।
अंजन वाणी अंजन वेद,
अंजन किया नाना भेद।
अंजन विद्या पाठ पुराण,
अंजन फोकट कथ ही ज्ञान रे॥
वाणी और वेद माया ही हैं। माया ने ही ये विभिन्न रूपात्मक भेद किए हैं अथवा माया के प्रश्रय से ही यह रूपात्मक जगत ब्रह्म से भिन्न प्रतीत होता है। माया ही विद्या, पाठ और पुराण है। यह व्यर्थ का वाचिक ज्ञान भी माया ही है।
अंजन पाती अंजन देव,
अंजन की करे अंजन सेव।
अंजन नाचे अंजन गावे,
अंजन भेष अनंत दिखावे रे॥
पूजा करने के साधन पत्रादिक तथा पूज्य देव-माया ही हैं। मायारूप पुजारी मायारूप देवता की सेवा करता है। माया ही नाचती है और माया ही गाती है। माया ही अनन्त भेषों में अपने आपको प्रदर्शित करती है।
अंजन कहाँ कहाँ लग केता,
दान पुनि तप तीरथ जेता।
कहे कबीर कोई बिरला जागे,
अंजन छांड़ी निरंजन लागे रे॥
माया के बारे में कहाँ तक कहूँ और उसके कितने रूपों का वर्णन करूँ? दान, पुण्य, तप, तीर्थ आदि जितने जो कुछ हैं, सब माया ही हैं। कबीर कहते हैं कि किसी बिरले को ही यह बोध होता है और वही माया का परित्याग करके माया रहित तत्त्व निरंजन में लीन होता है।
🎙️कुमार गन्धर्व Kumar Gandharva