🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Jhagra ek nibero ram kabeer
झगरा एक निबेरो राम।
जो तुम अपने जन सो काम॥
इह मन बड़ा कि सो मन मानिया।
राम बड़ा कि रामहि जानिया॥
ब्रह्मा बड़ा कि जासु उपाइया।
वेद बड़ा कि जहां ते आइया॥
कहे कबीर हौं भइया उदास।
तीर्थ बड़ा कि हरि का दास॥
कबीर कह रहे हैं, एक झगड़ा सुलझा दोे। यह वचन बड़ा प्रीतिकर है। यह ऐसे बात हो रही है जैसे अस्तित्व सामने खड़ा हो। भक्त ही इतनी हिम्मत कर सकते हैं..ऐसी सीधी बातचीत करने की कि एक झगड़ा है, इसे सुलझा दोे और किसी से क्या पूछने जायें, जब तुम्हीं अपने हो तो और लोगों से क्या लेना-देना? इसलिए सीधे ही पूछ लेते हैं। अब तुम्हीं मौजूद हो पूछने को तो फिर हम और किसी से क्या पूछने जाएं?
‘इहु मन बड़ा कि सउ मन मानिया।’ यह उलझन है..यह मन बड़ा है कि इस मन को भी जो जान लेता है वह साक्षी! जो सारे मन का जानने वाला है, वह बड़ा है या यह मन बड़ा है!
'राम बड़ा कि रामहि जानिया’ और राम नाम बड़ा है कि राम को जानने वाला बड़ा है!
ब्रह्मा बड़ा कि जासु उपाइया। और ब्रह्मा बड़ा है कि जिससे ब्रह्मा उत्पन्न हुआ..वह अस्तित्व, वह सत्ता का मूल आधार बड़ा है!
'वेदु बड़ा कि जहां ते आइया।।’ और वेद बड़ा है कि वह परम चैतन्य जहाँ से वेद का जन्म होता है; कि वह गंगोत्री जहाँ से गंगा निकलती है?
‘कहु कबीर हउ भइया उदासु।’ मैं बड़ा उदास हूँ, कबीर ने कहा। यह उलझन तुम सुलझा दोे।
‘तीरथ बड़ा कि हरि का दासु।’ और तीर्थ बड़ा है कि हरि का भक्त, हरि का दास बड़ा है!
🎙️जगतार सिंह Jagtar Singh