🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Haun Vari Mukh Fer Piyaare Gurbaani
Kabeer Bhajan कबीर भजन गुरबानी
हौं (मैं) वारी मुख फेर पियारे।
करवट दे मोहे काहे को मारे॥
हे प्यारे प्रभु! मैं आप पर न्यौछावर हूँ; कृपा कर अपना मुख मेरी ओर करो, मेरे तरफ निहारो! मेरी तरफ पीठ कर मुझे क्यों मार रहे हो ! "यूँ अगर आप मोहन मुकर जायेंगे, तो भला हमसे पापी किधर जायेंगे"
"प्रीत की लत मोहे ऐसी लागी, हो गई मैं मतवारी।
बल-बल जाऊँ अपने पिया को, हो मैं जाऊँ वारी-वारी"
करवट भला न करवट तेरी।
लाग गले सुन बिनती मेरी॥
करवट (मुख मोड़ने) से बढ़िया तो करवट (बड़ा आरा) काटने का आरा अच्छा है, पर आपकी करवट कतई अच्छी नहीं लगती। गले लगकर मेरी अरदास सुनिए!
जो तन चीरहि अंग न मोरो।
पिण्ड परै तव प्रीत न तोरो॥
भले ही मेरे शरीर को चीर दे, पर मैं अपने अंगों को आपसे अलग नहीं करूंगा अर्थात् आपसे मुुख नहीं मोडूंगा। भले ही मेरा शरीर नष्ट हो जाए, गल जाए, पर मैं आपसे अपने प्रेम-सूत्र को नहीं तोड़ूंगा।
हम तुम बीच भइओ नहीं कोई।
तुम्ह सो कन्त नार हम सोई॥
तुम्हारे और मेरे बीच कोई दूसरा (द्वैत) नहीं है। तुम मेरे पति (स्वामी) हो, मैं आपकी पत्नी (सेविका) हूँ। मीरा बाई भी अपने पद में कहती हैं "थे म्हारा और मैं थाकी म्हारा साँवरिया गिरधारी" "मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई"।
कहत 'कबीर' सुन हो रे लोई।
अब तुमरी परतीत न होई॥
कबीर कहते हैं, सुनो, हे लोगों ! अब मैं तुम पर भरोसा नहीं करता।
देख लिया संसार हमने देख लिया।
सब मतलब के यार हमने देख लिया॥
जिस जिस का विश्वास किया है,
उसने हमें निराश किया है।
बनकर रिश्तेदार हमने देख लिया।
देख लिया संसार हमने देख लिया॥
मत लब हिला मतलब समझ मतलब का सब संसार है।
छोड़ों तलब लब पर रखो हरिनाम यह ही सार है॥
उसी को जीने का हक है इस ज़माने में
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए
न पाने से किसी के है न खोने से मतलब है।
ये दुनिया है इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है।
गैर मुमकिन है कि दुनिया अपनी मस्ती छोड़ दे
इसलिए ऐ दिल तू ही यह बेकार बस्ती छोड़ दे
🚩श्री निरंजनी अद्वैत सेवा संस्थान भाँवती🙏🏻
🎙️ सतविंदर सिंह Satwinder Singh