🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
फरीदा तिन्ना मुख डरावने
जिन्हां बिसारियो नाऊं।
एत्थे दुःख घनेरिआ
अगै ठौर न ठाऊं॥
ऐसा व्यक्ति जो प्रभु का सिमरन नहीं करता, जिसने हरिनाम को बिसारकर अहंकार से घूमता फिरता है, उनका चेहरा बहुत डरावना हो जाता है। उसे न इस लोक में और न आगे परलोक में सुख मिलता है।
Aise Logan So Kya Kahiye Shabad
नानक सबद गुरबानी Nanak Gurbaani
ऐसे लोगन सों क्या कहिये।
जो प्रभ की भगति ते बाहज,
तिन ते सदा डराने रहिये॥
ऐसे लोगों से क्या कहे, उन्हें क्या समझाये, जो प्रभु की भक्ति से दूर हैं, भागते हैं, ऐसे लोगों से डरते रहो अर्थात् उनसे कोसों दूर रहें। ऐसे लोगों से क्यों दूर रहें? ये कबीर आगे समझाते हैं...
हरि जस सुनै न हर गुन गावै।
बातन ही असमान गिरावै॥
ऐसे लोग न तो कभी प्रभु की महिमा सुनते हैं, न ही हरि के गुण गाते है, परन्तु शेखभरी बातों से (जैसे) आसमान ढहा देते हैं।
आप न दे चुल्लू भर पानी।
ते निंदहि जे गंगा आनी॥
वह लोग खुद तो किसी को एक चुल्लू जितना पानी भी नहीं देते और उलटे उनकी निन्दा करते हैं, जिन्होंने गंगा बहा दी हो।
बैठत उठत कुटिलता चालै।
आप गये औरनहुँ घालै॥
बैठते-उठते (हर समय) टेढ़ी चालें ही चलते हैं, वे खुद तो गये-गुजरे है ही और लोगों को भी गलत राह पर डाल देते हैं।
छाड़ि कुचर्चा आन न जानै।
ब्रह्माहुँ को कह्यो न मानै॥
कुचर्चा (गलत बातों) के सिवाय वे और कुछ नहीं जानते, इनको साक्षात् ब्रह्माजी भी आकर कहे (समझाये) तो ये उनका भी कहना नहीं मानेंगे, फिर और की तो बात ही क्या!
आप गये औरनहुँ खोवै।
आग लगाये मंदिर में सोवै॥
अपने आप से गए गुजरे ये लोग और लोगों को भटकाते है, वे आग लगाकर तमाशा देखने वाले हैं। घर में आग लगाकर सोने वाला व्यक्ति खुद भी नहीं बचता। उनके लिए किसी कवि खूब कहा है- सँभलकर बैठना जलवे मोहब्बत देखने वालो, खुद तमाशा मत बन जाना तमाशा देखने वालों।
औरन हँसत आप होंहि काणे।
तिनको देख 'कबीर' लजाने॥
वे खुद तो काणे है (कई विकारों में फँसे हुए हैं) परन्त औरों का उपहास उड़ाते हैं। ऐसे लोगों के देखकर हे कबीर शर्म आती है।
अरड़ावै बिललावै निन्दक।
पारब्रह्म परमेसरु बिसरिआ।
अपणा कीता पावै निन्दक॥
(साधु-संतों की) निंदा करने वाला मनुष्य बहुत चीखता-चिल्लाता एवं विलाप करता है। निंदक ने परब्रह्म-परमेश्वर को विस्मृत कर दिया है जिसके परिणामस्वरूप वह अपने किए कर्मो का फल भोग रहा है।
जे कोई उसका संगी होवै
नाले लए सिधावै॥
(हे भाई !) यदि कोई पुरुष उस निंदक का संगी बने तो वह निंदक उसे भी अपने साथ (नरककुण्ड में) डूबो लेता है।
अणहोदा अजगर भार उठाए।
निन्दक अगनी माहिं जलावै॥
निंदक अजगर के भार के समान अनन्त बोझ उठाए फिरता है और अपने आपको निन्दा की अग्नि में सदैव जलाता है।
काहू लै पाहन पूज धरयो सिर,
काहू लै लिंग गरे लटकाइओ॥
काहू लखियो हरिअवाची दिसा में,
काहू पछाह को सीसु निवाइओ॥
कोई पत्थर रख उसकी पूजा करने लगा, पत्थर को शिवलिंग बना कर उसकी पूजा करने लगा, किसी ने पत्थर को चाँदी में मढ़कर गले में (प्रतीक के रूप में ) लटका लिया, हिन्दू कहते हैं कि वह दक्षिण दिशा में है, मुस्लिम कहते हैं कि वह पश्चिम में है, कोई आगे को शीश झुका रहा है, कोई पीछे को अर्थात् कोई पश्चिम की तरफ शीश झुका सजदा कर रहा है।
दक्खन देसि हरि का बासा,
पच्छिमि अलह मुकामा।
दिल महि खोजि दिलै दिलि,
खोजहुँ ऐही ठौर मुकामा॥
"आदिग्रन्थ"
कोई कहता है कि वह दक्षिण में है कोई कहता है कि वह पश्चिम में है लेकिन हरि हृदय में है।
कोऊ भूतन कोऊ पूजत है पसु,
कोऊ मृतन को पूजन धाइओ।
कूर क्रिया उरझियो सबही जग,
श्रीभगवान को भेद न पाइओ॥
कोई पशु-भूत को पूजता है, कोई मरे हुए को पूजता है। पत्थर-भूत पूजने से अच्छा है किसी पशु की ही सेवा कर ली जाये। यह सारी कूर क्रिया ही है। सारा जग इसी में उलझा हुआ है। धर्म का काम चाहे कोई भी करता है, चाहे कोई माला फेरता हो, चाहे कोई लंगर चला रहा है, चाहे कोई वाहेगुरु वाहेगुरु कर रहा है, चाहे कोई कीर्तन दरबार लगा रहा है, लेकिन यदि श्री भगवान का भेद नहीं पाया तो उसके द्वारा किया सब कुछ व्यर्थ ही है । जिस क्रिया द्वारा श्री भगवान का भेद पाया जा सकता है उसे छोड़ अन्य सब कुछ कूर क्रिया ही है। गुरबानी विचार द्वारा ही भगवान का भेद पता चलता है। परमात्मा कौन है, कैसा है, कहाँ रहता है, इन सभी सवालों के जवाब गुरु वचनों में है।
गुरबानी को खोजना समझना है, बार-बार पढ़ना नहीं है। लगातार 100-1000 पाठ करना, मूलमंत्र का पाठ करना। यह सब पाखंडियों का धंधा है। पंडित की तरह सिक्खों ने भी इसे अपना धंधा बना लिया। इसे आमदनी का साधन बना लिया। जब धर्म आमदनी का साधन बन जाए फिर वह धर्म नहीं रहता धंधा बन जाता है।
ब्रह्मा महेसर बिसनु सचिपति,
अन्त फँसे जम फाँसि परैंगे।
जे नर श्री पति के परस हैं पग,
ते नर फेर न देह धरैंगे॥
ब्रह्मा, महेश, विष्णु, इंद्र आदि सभी यम के फाँस में हैं अर्थात् सभी जन्म मरण में हैं। यदि कोई इनसे जुड़ा हुआ है, वह भी जन्म मरण में ही रहेगा। इन्हें छोड़ यदि कोई हुक्म से जुड़ गया, जो अंतरात्मा से जुड़ गया वह नर फिर देह धारण नहीं करेगा । वह मुक्त हो जाएगा।
🚩श्री निरंजनी अद्वैत आश्रम भाँवती🙏🏻
🎙️ सतविंदर सिंह Satwinder Singh
🎙️ निर्मल सिंह Nirmal Singh