🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Santo Ghar Me Jhagda Bhaari
Kabeer Bhajan कबीर भजन
सन्तो ! घर में झगड़ा भारी॥
रात दिवस मिल उठ उठ लागैं,
पाँचों ढोटा एक नारी.........
न्यारो न्यारो भोजन चाहें,
पाँचों अधिक स्वादी.........
कोई काहू को हटा न माने,
आपहि आप मुरादी.........
दुर्मति केर दोहागिन मेटे,
ढोटेहि चाप चपेरे.........
कहहिं 'कबीर' सोई जन मेरा,
जो घर की रार मिटे रे.........
कबीर साहेब साधकों से कहते हैं- हे संतो प्रत्येक घर में भारी झगड़ा हो रहा है । दूसरे घर की बात तो छोड़ों अपने ही घर के झगड़े को शान्त करने के बजाय पड़ोस के घर झगड़े को मिटाने का असफल प्रयास करते हैं । कबीर कहते हैं कि हे सन्तो मुझे वही लोग अच्छे लगते हैं, प्रिय लगते हैं जो पहले अपने घर में लगी हुई झगड़े रूपी आग को बुझाते हैं । कबीर के साथ वे ही चल सकते हैं जो पहले अपना सुधार करते हैं फिर बाद में दूसरों को सुधारने का प्रयास करते हैं। ऐसे ही लोग कबीर के सही मायने में साथी हो सकते हैं। जो घर जारै आपनो चले हमारे साथ। प्राय: सभी धर्मों सम्प्रदायों का एक ही मत है जो आत्म अनुसन्धान का है। सिद्धान्त एक होते हुए भी इन धर्म गुरुओं में आपसी मतभेद कम नहीं होता । साहेब ने ज्वलंत उदाहरण देते हुए इस शरीर में चिपके हुए पाँच ज्ञानेन्द्रियों को आपस में झगड़ते देखकर कहा । यहाँ कोई एक दूसरे को सुनने को थोड़ा भी तैयार नहीं है। आँख अच्छे मनोहारी दृश्य को देखना चाहता है, जबकि कान को इनसे कोई मतलब नहीं वह अच्छे-अच्छे भजन कीर्तन, चारी चुगली पर निंदा सुनना पसन्द करता है । नाक के दृश्य और वचनों से कोई मतलब नहीं । उसकी एक अलग ही पसन्द है । वह सुगन्ध इत्र, गुलाब की खुशबू चाहता है । मदहोश व्यक्ति दुर्गन्ध में भी सुगन्ध का अनुभव करता है । जीभ को षडरस व्यंजन चाहिए वह खट्टा, मीठा, खटमीठा, कड़वा, चरपरा पसन्द करता है । इन सबसे भिन्न एक चमड़ी है जो नरम, मुलायम, चिकना व गरम शीलता में आनन्दित होती है । इस प्रकार से पाँचों ज्ञानेन्द्रियों जो आत्मशोधन के साधन है अपनी-अपनी इच्छाओं को लेकर एकमत नहीं होते हैं । दुनिया में अनेक प्रकार के लोग हैं जिनके पसन्द व रूचि भी भिन्न भिन्न है । मनुष्य विवेकशील प्राणी हैं, परन्तु अधिकांश लोग विवेक का दुरुपयोग करते हैं । कोई गर्त में ले जाने वाला दृश्य देखता है कोई गीत व कहानी किस्से पसन्द करता है। कोई मांस खाता है । शराब पीता है और ये लोग इह लोक और परलोक से हाथ धो बैठते हैं। इस प्रकार आपसी सामंजस्य न होकर मनुष्य अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाता । कई लोग खाओ पीओ मजा करो अपना लक्ष्य समझते हैं, परन्तु केवल खा-पीकर मनुष्य मजा नहीं ले सकता यह अकाट्य सत्य है । कबीर कहते हैं इस हृदय रूपी घर में भारी झगड़ा मचा है । पाँच ज्ञानेन्द्रियों रूपी पाँच लड़के तथा दुर्बुध्दि रूपी एक नारी ये छहों रात-दिन उठ-उठ कर जीव से झगड़ने लगते हैं । पाँचों ज्ञानेन्द्रियों अपना अलग-अलग भोजन चाहती है । ये पाँचों बड़ी लम्पट है । ये किसी का कहना नहीं मानती, किन्तु अपनी-अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने में लगी रहती है, अतएव साधक को चाहिए कि वह दुर्बध्दि का सबसे बड़ा दुर्भाग्य समझकर उसे नष्ट कर दे और इन्द्रियों-बच्चों को चपाट लगाकर उन्हें बैठा दे । अर्थात् इन्द्रियों का दमन कर दे । कबीर साहेब कहते हैं कि वही मेरा अनुगामी है, जो अपने इस झगड़े को मिटा दे ।
🚩श्री निरंजनी अद्वैत आश्रम भाँवती🙏🏻