🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Mukhda kya dekhe darpan me kabeer
साईं सब संसार में, मतलब को व्यवहार,
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार।
तब लग ताको यार, संगही संग में डोले,
पैसा रहा न पास, यार मुख से नहिं बोले।
कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई,
बिन बेगरजी प्रीति यार बिरला कोई सांई॥
बिना बिचारे जो करै, सो पाछे पछिताय,
काम बिगारे आपनो, जग में होत हँसाय।
जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै,
खान पान सन्मान, राग रंग मनहिं न भावै।
कह गिरिधर कबिराय दुःख कछु टरत न टारे,
खटकत है जिय माहिं कियो जो बिना बिचारे॥
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, तेरे दया धर्म नहि मन में॥
कागज की एक नाव बनाई, छोड़ी गहरे जल में।
धर्मी कर्मी पार उतर गया, पापी डूबे जल में॥
नीच नीच सब तर गये, राम भज न लवलीन।
जाति के अभिमान से, डूबे सभी कुलीन॥
खेंच खाँचकर साफा बांधे, तेल लगावे जुल्फन में।
इसी बदन पर घास उगेली, पशु चरेंगे बन में॥
कंगण कड़ा कान की बाली, उतार लेवे पलछन में।
तेरी काया काम न आवे, नंग धरे आंगन में॥
कहे दास सगराम, मूढ़ मिनखा तन पायो,
भज्यो न सिरजणहार कमायो सोयो खायो।
खायो ने सोयो पशु कियो विषयन सूं प्यार,
आयो चौरासी भुगतने फिर जावण ने त्यार।
फिर जावण ने त्यार, रांड गेली रो जायो,
कहे दास सगराम, मूढ़ मिनखा तन पायो॥
घर वाले तो घर में राजी, फक्कड़ राजी बन में।
आम की डार कोयलिया बोले, सुवा बोले बन में॥
कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी, गाड़ी खोद भवन में।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, रह गई मन की मन में॥