🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂

Dar Lage aur hasi aave Kabeer lyrics 

कामी  क्रोधी  लालची, इनसे  भक्ति  न होय।

भक्ति करे कोई सूरमा, जाति वर्ण कुल खोय॥


डर लागे और हाँसी आवै, अजब  जमाना  आया रे॥ 


धन दौलत लै माल खजाना, वैश्या  नाच  नचाया रे।

मुट्ठीभर अन्न साधु कोइ माँगै, कहैं लाज ना आया रे॥


कथा  होय  तहाँ  श्रोता  सोवै, वक्ता  मूड  पचाया रे।

होय जहँ कहीं स्वांग तमासा तनिक न नींद सताया रे॥


भांग  तम्बाखू  सुल्फा  गाँजा, सूखा खूब  उड़ाया रे।

गुरु  चरणामृत  ले  न  धारे, महुवा चाखन आया रे॥


उलटी चलन चली दुनिया की, ताते जिय घबराया रे। 

कहत कबीर सुनो भाई साधो, फिर पाछे पछताया रे॥


शब्दार्थ- सूखा- खुश्क तंबाकू । महुवा- महुआ- फल, लाक्षणिक अर्थ शराब । 


संसारियों की उल्टी बुद्धि पर हँसी लगती है और उसे कहने में भय लगता है, क्योंकि सत्य कहने पर लोग असंतुष्ट होते हैं । नजर फेरकर देखा तो कैसा अजब जमाना आया है ! ऐसे लोग भी हैं जो वैश्या के नाच-गान तथा विलास में पड़कर अपनी धन-दौलत तथा माल-खजाना नष्ट कर देते हैं, किन्तु यदि उन्हीं के दरवाजे पर कोई साधु आकर एक मुट्ठी अन्न मांगे, तो वे उसे कहते हैं कि तुम्हें अन्न मांगने में लज्जा नहीं लगती। जहाँ सत्संग एवं धार्मिक कथा-वार्ता होती है वहाँ श्रोता सोते हैं और वक्ता बेचारा भाषणबाजी करके अपना सिर थकाता है, किन्तु वे ही लोग जहाँ नाच, स्वांग, तमाशा, नाटक आदि होते हैं उनके देखने में थोड़ा भी आलस्य नहीं करते । उन्हें वहाँ नींद नहीं आती। लोग भांग और तंबाकू खाते, सुल्फा और गांजा पीते, खुश्क तंबाकू भी खूब खाते हैं । वे ही लोग सद्गुरु के चरणामृत का अपमान करते हैं और शराब पीने के लिए सदाचार के उलटे उसके ठेके की दुकान तक दौड़ते रहते हैं । संसार के बहुत लोग सुख - शांति प्रदायक दुराचार के पथ पर चलते हैं । इससे संसार को देखकर मन ऊबता है। कबीर साहेब कहते हैं कि हे संतो ! सुनो, ये कुपथ पर चलने वाले जीवन के अंत में पश्चाताप में जलेंगे।