🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂 

Kya leke aaya tu jag me kya lekar Kabeer 

क्या लेकर आया तू जग में क्या लेकर तू जायेगा।

सोच समझले रे मन मूरख आखिर में पछतायेगा॥


भाई बन्धु मित्र तुम्हारे ये मरघट तक संग जायेंगे,

स्वार्थ के दो आँसू बहाकर लौट लौट घर आयेंगे।

कोई न तेरे  साथ  चलेगा, अन्त अकेला जायेगा॥


कंचन जैसी कोमल काया, क्षण  में  जलाई  जायेगी,

जिस नारी से जन्म का बन्धन, बन्धन तोड़के जायेगी।

कुछ दिन तक वो याद रखेगी फिर तू याद न आयेगा॥


राजा रंक पुजारी पण्डित, सबको एक दिन जाना है,

आँख खोलकर देख प्यारो जगत मुसाफिर खाना है।

तेरा  सारा   पाप   पुण्य   ही   साथ  तेरे  जायेगा॥


भागत दौड़त दिन गयो, नर सोय‌ गई रात।

एक घड़ी प्रभु ना भजो तेरी शर्म की बात॥


कबीरा काँचे देह का मोहि भरोसा नांहि।

कब बैठा बाजार में आज मसाना मांहि॥


क्या   लेके   आया   बन्दे, क्या  लेके  जायेगा। 

दो  दिन  की  जिंदगी  है  दो  दिन  का  मेला॥ 


इस जगत  सराय  में  मुसाफिर  दो  दिन  का,

बिरथा  करे  गुमान  मूरख  धन   जोबन  का। 

नहीं है  भरोसा पल का, तू गफलत  में खेला॥


वो चले गये बलवान तीन पग धरती तौलनिया,

जाकी एडी पड़ती धाक, नहीं सामें बोलणिया।

निर्भय  डोलणियाँ  वे  तो, गया   रे  अकेला॥


ना छेड़  सकेगा  कोई, माया  गिणी गिणाई ने,

गढ़ कोठा की नींव छोड़ गया चिणी चिणाई ने।

चिणी  रे  चिणाई  रह  गई, गया  है  अकेला॥


इस काया का है भाग भाग बिन पाया नहीं जाता,

कहे शर्मा बिना नसीब तोड़ फल खाया नहीं जाता।

भवसागर   से   तर   रे  बन्दे, हरी   गुण   गैला॥