आ तो गया हूँ मगर जानता हूँ।
दीनबन्धु दीनानाथ, मोरी सुध लीजिये।
गुरुजी मैं तो एक निरंजन ध्याऊँ जी।
मूरख छोड़ वृथा अभिमान॥
साधो ऐसा गणपति ध्याया।
म्हारा सद्गुरु चतुर सुजान
थारे घट में बसे रे भगवान
आत्म का ज्ञान जिनको
माई म्हाने सुपनामां परण्या जी दीनानाथ।
ऐसा गुरु दीन दयाल।
हम बालक तुम माई हमारी।
साधो भवसागर के माहिं, काल होरी खेलाई॥
सुमिर सुमिर नर उतरो पार
तेरी गति सब में जानी हो॥
तुम गुनवंत मैं औगुन भारी।
अब तुम अपनी ओर निहारो।
साधो मन माया के संग, सब जग रंग रह्यो॥
नैनों लख लैनी साईं तेरे हजूर।
नमो नमो गुरु तुम सरना॥
आतम पूजा अधिक जान।
ज्यों त्यों राम नाम ही तारे।
मैं तो खेलूँ प्रभु के संग
सबहिन के हम सबै हमारे।
तेरा मैं दीदार-दीवाना।
भजन बने ना तोसे,मन सैलानियाँ॥
राम मिलन क्यों पइये
गर्व न कीजे बावरे, हरि गर्व प्रहारी।
साधो इंद्रिय खाय गई जग सारा।
जोई-जोई प्यारौ करै, सोई मोहि भावै
जिधर देखा उधर पाई
माया के ग़ुलाम, गीदी क्या जाने बन्दगी॥
माई मोहे बिरह सतावै।
सबसे लालच का मत खोटा।
अब मैं सद्गुरु पाया मन तें जन्म जन्म डहकाया॥
संतन को आवत निरखि
ग्वालिनी राँची हरि के रंग।
चलि मन ढूँढ़न जाइए
मैं तो हूँ भगतन को दास
साधो निंदक मित्र हमारा।
श्री गुरुदेव भरोसो साँचो
जगत में कोय न परमानेंट।
जो सुमिरूँ तो पूरण राम।
भजन बिन चोला है बेकाम।
अरे बाप रे बाप।
हौं तो खेलौं पिया संग होरी।
गुरु बिनु होरी कौन खिलावै।
भगत को कहा सीकरी काम।
सन्तन की रहियो छाया में।
नहीं मानता मन, हमारे कहे को।
तुम्हें छोड़ कोई हमारा नहीं है।