🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Holi Jali To kya Jali Papin Avidya
होली जली तो क्या जली,
पापिन अविद्या नहीं जली।
आशा जली नहीं राक्षसी,
तृष्णा पिशाच नहीं जली॥
झुलसा न मुख आसक्ति का,
ना भस्म ईर्ष्या की हुई।
ममता न झोंकी अग्नि में,
नहीं वासना फूँकी गई॥
होली अगर हो खेलनी,
तो सन्त सम्मत खेलिये।
संतान शुभ ऋषि मुनिन की,
मत सन्त आज्ञा पेलिये॥
सच को ग्रहण कर लीजिए,
जो झूठ हो तज दीजिये।
सच झूठ के निर्णय बिना,
नहीं काम कोई कीजिये॥
होली हुई तब जानिये,
संसार जलती आग हो।
सारे विषय फीके लगें,
नहीं लेश उनमें राग हो॥
हो शांति कैसे प्राप्त निशदिन,
एक यह ही ध्यान हो।
संसार दुःख कैसे मिटे,
किस भाँति से कल्याण हो॥
होली हुई तब जानिये,
पिचकारी सदगुरु की लगे।
सब रंग कच्चे जाये उड़,
इक रंग पक्के में रंगे॥
नहीं रंग चढ़े फिर द्वैत का,
अद्वैत में रंग जाय मन।
है सेर जो चालीस सोही,
जानियेगा एक मन॥
होली हुई तब जानिये,
श्रुतिवाक्य जल में स्नान हो।
विक्षेप मल सब जाय धुल,
निश्चिन्त मन अम्लान हो॥
शोकाग्नि बुझ निर्मल हो
मतिस्वस्थ निर्मल शान्त हो।
शीतल हृदय आनन्दमय,
तिहुँ पाप का पूर्णान्त हो॥
होली हुई तब जानिये,
सब दृश्य जल कर छार हो।
अज्ञान की भस्मी उड़े,
विज्ञानमय संसार हो॥
हो मांहि हो लवलीन सब,
है अर्थ होली का यही।
बाकी बचे सो तत्त्व अपना,
आप सबका है वही॥
भोला! भली होली भयी,
भ्रम भेद कूड़ा बह गया।
नहीं तू रहा नहीं मैं रहा,
था आप सो ही रह गया॥
अद्वैत होली चित्त देकर,
नित्य जो नर गायेगा।
निश्चय अमर हो जायेगा,
नहीं गर्भ में फिर आयेगा॥
🎙️Chinmay Jha चिन्मय झा