🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Hari Tum Bahut Anugraha Kinho
Tulsidas Vinay Patrika Pad lyrics
हरि तुम बहुत अनुग्रह किन्हों॥
साधन-नाम बिबुध दुरलभ तनु,
मोहि कृपा करि दीन्हों॥
हे भगवन् !!! तुमने मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है। स्वभाव से करुण तुमने द्रवित होकर मुझे मानव तन प्रदान कर दिया है
मानव तन पाने का मैं तो बिल्कुल भी योग्य नहीं था। मेरे अनगिनत पापों का यदि लेखा जोखा किया जाय तो मैं अनंत जन्मों तक कुत्ते, सुअर, कीड़े, मकोड़े आदि योनियों में ही भटकूँ तब भी मेरे पाप शायद ही समाप्त हो, तुमने मेरे सभी पापकर्मों को भुला कर देवताओं के लिए भी दुर्लभ-मानव तन प्रदान किया। यह मानव तन सभी साधनों, मोक्ष एवं तुम तक पहुँचने का एकमात्र जरिया है। यह मेरे लिए किसी लॉटरी से कम नहीं है। यह केवल तुम्हारी अकारण कृपा से ही मुझे प्राप्त हुआ है।
कोटिहुँ मुख कह जात न प्रभु के,
एक एक उपकार।
तदपि नाथ कछु और माँगिहौं,
दीजै परम उदार॥
हे हरि! सिर्फ यही नहीं, तुम्हारे मुझ पर इतनें उपकार हैं कि मैं एक क्या, करोड़ों मुखों से भी यदि तुम्हारे एक एक उपकार तुमको गिनाऊँ, तो भी समाप्त नहीं होंगे।
बिषय-बारि मन-मीन भिन्न नहिं,
होत कबहुँ पल एक।
ताते सहौं बिपति अति दारुन,
जनमत जोनि अनेक॥
मेरा मन विषय रूपी तालाब में मछली के समान विषय के अंदर ही तैरता है।
इसे जगत के भोग बड़े रुचिकर लगते हैं। एक क्षण के लिए भी यह मन विषयों से पार नहीं पाना चाहता। अनंत जन्मों से इस मन को विषय रूपी जल में ही तैरने की आदत है और आदत तो इतनी जल्दी छूटती नहीं। सों मैं प्रयास करके भी अपने मन, इन्द्रियों को विषयों से अलग नहीं कर पा रहा, जिसके कारण मैं इस जगत के बंधनों में बँध कर अनंत दुःख पा रहा हूँ।
जन्मत मरत दुःसह दुःख होई ।। मानस ।।
जन्म और मृत्यु के समय जो भयंकर कष्ट होता है, वह असह्य है और मैं उस दुःख को अनंतकाल से भोग रहा हूँ।
कृपा डोरि बनसी पद अंकुस,
परम प्रेम-मृदु चारो।
एहि बिधि बेगि हरहुँ मेरो दुःख,
कौतुक राम तिहारो॥
इतने उपकार किये हो तो एक उपकार और कर दो न! तुम विषयरूपी जल में मेरे मछली रूपी मन को अपनी कृपा रूपी डोरी से, अपना प्रेममय चारा डालकर करुणारूपी वंशी से इसे जबरन पकड़कर विषयरूपी जल से बाहर खींच लो न और अपने में लगा लो न! तुम कृपा स्वरूप हो । तुम मछली पकड़ने वाला खेल खेलो न! इस खेल से मैं विषयों से बाहर निकल कर नित्य तुम्हारी लीला में प्रवेश कर जाऊंगा और मेरा अनंतकालीन दुःख भी खत्म हो जायेगा ।
हैं श्रुतिबिदित उपाय सकल सुर,
केहि केहि दीन निहोरै।
तुलसीदास यहि जीव मोह रजु,
जोइ बाँध्यो सोइ छोरै॥
तुम्हारी इसी अकारण करुणता का बखान वेद भी करते हैं और तुम्हारे इसी स्वभाव के कारण अनेक दीन, हीन, अधम ने भी तुमको पाया है। जब अनेक अधमों को तुमने अकारण कृपा कर उबारा ही है तो मुझ पतित, अधम को क्यों छोड़ रहे हो? इतनो को तारा तो एक और ही सही ।
पतित पावन नाम तुम्हारा अनंत पापियों को तार देता है तो मुझे मत छोड़ो। मुझे भी उबार लो न! कितनी अच्छी जोड़ी जमेगी मेरी और तुम्हारी ।
मैं पतित तुम पतित पावन दोऊ बानक बने। मैं हरि पतित पावन सुने।
🎙️ओस्मान मीर Osman Mir
https://youtu.be/QQrZFElaSrs?si=2g6LKDEsqT_f_DLR
🎙️देवी चित्रलेखा Devi Chitralekha
https://youtu.be/J9Bn3dqKTwU?si=1r_QwBSGEqIOK-NW