🕉️🎯👌🏻 श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Hai naman pad padmo me barambar Tulsidas
है नमन पाद पद्मों में, बारम्बार बाबा तुलसी।
कलि कुटिल जीव निस्तार हेतु, अवतार बाबा तुलसी॥
राजापुर की धरा धन्य, तव जन्म भूमि कहलाकर के।
माँ हुलसी की कोखधन्य तव जननी का पद पाकरके॥
धन्य पिता परिवार गोत्र कुल, धन्य जगत यश गाकर।
भारत धन्य भारती धन्या, मानस सलिल नहा करके॥
वे सकल धन्य जिन गाये चरित, उदार बाबा तुलसी।
कलि कुटिल जीव निस्तार हेतु अवतार बाबा तुलसी॥१॥
अद्भुत जीवन वृत्त आपका, भिन्न सर्वसाधारण से।
जनमत मुख बत्तीस दंत जो, अश्रुतसिद्ध कविचारण से।
इतर भिन्न तजि कहाँ-कहाँ मुख खुला राम उच्चारण से।
प्रगटे अशुभ अभुक्त मूल में, हुए तरण अरु तारण से॥
लै नाम आपका, बहुत हुए, भव पार बाबा तुलसी।
कलि कुटिल जीव निस्तार हेतु, अवतार बाबा तुलसी॥२॥
हुए दिवंगत पिता आत्माराम, पुत्र मुख लख न सके।
हुलसी भी चल बसी, आप वात्सल्य सुधारस चख न सके॥
चुनियाँ को भी दुनियाँ में बिधि, बहुतदिन तक रख न सके
राजापुर के लोग आप-सा, रत्न नितान्त परख न सके॥
अब रहा एक श्री राम नाम, आधार बाबा तुलसी।
कलि कुटिल जीव निस्तार हेतु, अवतार बाबा तुलसी॥३॥
पायस पाय अन्नपूर्णा से, विपदा भी वरदान बनी।
हरिप्रेरित गुरु नरहरि दास ने, करी अचानक कृपा घनी॥
शेष सनातन की सहाय भये, विद्या, वेद पुराण धनी।
बसा गेह, मन फँसा नेह रजु, रत्नावली पाय पत्नी॥
पुनि जगे तुरत सुनि पत्नी से, श्रुति-सार बाबा तुलसी।
कलि कुटिल जीव निस्तार हेतु, अवतार बाबा तुलसी॥४॥
काशी बसि, पा पता प्रेत से, हनुमत का दर्शन पाया।
हनुमत्कृपा, राम दर्शनकर, हुआ आपका मन भाया॥
चित्रकूट के घाट का दोहा, जन-जन, कण्ठ-कण्ठ छाया।
रामचरितमानस प्रकाशहित, परम पुण्य अवसर आया॥
शिव कृपा-पुरस्सर किये ग्रन्थ, तैयार बाबा तुलसी।
कलि कुटिल जीव निस्तार हेतु, अवतार बाबा तुलसी॥५॥
पहले तो कहि भाषा ग्रंथ, कुछ विप्रों ने अपमान किया।
स्वार्थ मलिन मन नर ने कब, परमार्थ को सम्मान दिया।
किन्तु उदीयमान दिनकर पर, किसने झाँप पिधान दिया।
'सत्यं शिवं सुन्दरम्' लिखकर, शिव ने ग्रन्थ प्रमान किया।
फिर दिग दिगन्त में गूँजी, जय जयकार बाबा तुलसी।
कलि कुटिल जीव निस्तार हेतु, अवतार बाबा तुलसी॥६॥
राम चरित मानस जग के, कोने कोने में व्याप्त हुआ।
अवगाहन करके जिसमें, जगहित साधन पर्याप्त हुआ।
दानव को मानव करने का, श्रेय आपको प्राप्त हुआ।
जो अनुगत हुए आपके उनका भवभय सकल समाप्त हुआ॥
और सुलभ हुआ जग जीवत ही, फल चार बाबा तुलसी।
कलि कुटिल जीव निस्तार हेतु, अवतार बाबा तुलसी॥७॥
आये चोरी करन चोर, तिनका भी किन्तु चुरा न सके।
श्याम गौर पहरेदारों की, पैनी दृष्टि बचा न सके।
पा न सके भौतिक पदार्थ, पर रिक्तहस्त भी जा ना सके।
चरण शरण पाकर प्रभु की, वे फूले अंग समा न सके॥
मिट गया सदा का जन्म मरण, दुख भार बाबा तुलसी।
कलि कुटिल जीव निस्तार हेतु, अवतार बाबा तुलसी॥८॥
मृतक विप्र की सहगामिनि को, औचक आशीर्वाद दिया।
"हो पुत्री सौभाग्यवती" सुनि, विधवा ने फरियाद किया।
बाबा कहाँ सुहाग? मुझे तो, विधना ने बरबाद किया।
बोले आप, भजो प्रभु को, पुनि महामंत्र को याद किया।
उठ बैठा मृतक रहे सब लोग, निहार बाबा तुलसी।
कलि कुटिल जीव निस्तार हेतु, अवतार बाबा तुलसी॥९॥
सुना, मृतक को काशी में, तुलसी ने जीवन दान दिया।
मुसलमान दिल्ली पति ने, झट दूत भेज आह्वान किया।
रख वृंदावन पर दृष्टि आपने, दिल्ली को प्रस्थान किया।
प्रेत-योनि-गत केशव कवि का, मारग में कल्याण किया।
कर रामचन्द्र-चन्द्रिका, कवित्त सुधार बाबा तुलसी।
कलि कुटिल जीव निस्तार हेतु, अवतार बाबा तुलसी॥१०॥