🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
यह रचना दक्षिणी भारत के प्रसिद्ध महापुरुष श्री सदाशिव ब्रह्मेन्द्र जी की है। वेदान्त के प्रतिपाद्य जीवब्रह्मैक्य को इन्होंने जिस सरल, स्पष्ट, अलौकिक ढंग से समझाया है, वह अद्भुत है, आश्चर्य है। इतने अल्प शब्दों में सर्व को समेट लेना। अल्प को सर्वरूप में जान लेना, यही तो वेदान्त का लक्ष्य है, फिर कुछ करने को या नहीं करने को, कुछ बोलने को या नहीं बोलने को, कुछ शेष नहीं रह जाता। सब ब्रह्मरूप हो जाता है। "ब्रह्मविद् ब्रह्मैव भवति।"
Sarvam Brahmamayam Re Re Sanskrit
Sadashiv Brahmendra Lyrics
सर्वं ब्रह्ममयं रे रे! सर्वं ब्रह्ममयं॥
सब कुछ ब्रह्ममय है। सारा ब्रह्माण्ड ब्रह्मस्वरूप है।
किं वचनीयं (ये जानकर क्या बोलना चाहिए)
किमवचनीयम् (और क्या नहीं बोलना चाहिए।)
किं रचनीयं (क्या रचना करनी चाहिए)
किमरचनीयम्॥ (और क्या नहीं...)
किं पठनीयं (क्या पढ़ना चाहिए)
किमपठनीयम्। (और नहीं पढ़ना चाहिए)
किं भजनीयं (क्या भजना चाहिए।)
किमभजनीयम्॥ (और क्या नहीं भजना चाहिए।)
किं बोद्धव्यं (फिर क्या जानना चाहिए!)
किमबोद्धव्यम्। (और क्या नहीं...)
किं भोक्तव्यं (क्या भोगना चाहिए)
किमभोक्तव्यम्॥ (और क्या नहीं भोगना...)
सर्वत्र सदा हंस ध्यानम्।
(सर्वत्र अर्थात् सभी काल, सभी स्थान, सभी वस्तुओं में हंसरूपध्यान अर्थात् "सब ब्रह्मरूप है" ऐसा शुद्ध-बुद्ध ध्यान करना चाहिए।)
कर्तव्यं भो मुक्तिनिदानम्॥
(मुक्तिरूपी कर्तव्य में केवल ब्रह्मविचार अपेक्षित है।)
परिछिन्न वस्तु को प्राप्त करने के लिए कर्म की आवश्यकता है, ध्यान की आवश्यकता है, योग की आवश्यकता है, लेकिन अपरिच्छिन्न वस्तु की प्राप्ति के लिए किसी कर्म, ध्यान, योग की आवश्यकता नहीं है, बस ब्रह्मविचार कर्तव्य है। "अथातो ब्रह्मजिज्ञासा"। यही वेदान्त की घोषणा है।
आपका अपना मनजीत✍🏻
🚩जय श्री गुरु महाराज जी की🙏🥀