🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Sun Man Moodh Sikhavan Mero Tulsidas
सुन मन मूढ़ सिखावन मेरो॥
हरि-पद-बिमुख लह्यो न काहु सुख,
सठ यह समुझ सबेरो॥
बिछुरे ससि रबि मन नैननि तें,
पावत दुख बहुतेरो।
भ्रमत श्रमित निसदिवस गगन महँ,
तहँ रिपु राहु बड़ेरो॥
जद्यपि अति पुनित सुरसरिता,
तिहुँ पुर सुजस घनेरो।
तजे चरन अजहूँ न मिटत नित,
बहिबो ताहू केरो॥
छुटै न बिपति भजे बिनु रघुपति,
श्रुति संदेहुँ निबेरो।
तुलसिदास सब आस छाँड़ि करि,
होहुँ राम को चेरो॥
हे मूर्ख मन ! मेरी सीख सुन, हरि के चरणों से विमुख होकर का किसी ने भी सुख नहीं पाया। हे दुष्ट ! इस बात को शीघ्र ही समझ ले (अभी कुछ नहीं बिगड़ा है, शरण जाने से काम बन सकता है) ॥१॥
देख ! यह सूर्य और चन्द्रमा जब से भगवान्के नेत्र और मन से अलग हुए तभी से बड़ा दुःख भोग रहे हैं। रात-दिन आकाश में चक्कर लगाते बिताने पड़ते हैं, वहाँ भी बलवान् शत्रु राहु पीछा किये रहता है ॥२॥
यद्यपि गंगाजी देव नदी कहाती हैं और बड़ी पवित्र हैं, तीनों लोकों में उनका बड़ा यश भी फैल रहा है, परन्तु भगवच्चरणों से अलग होने पर तब से आज तक उनका भी नित्य बहना कभी बंद नहीं होता ॥३॥
श्रीरघुनाथजी के भजन बिना विपत्तियों का नाश नहीं होता। इस सिद्धान्त का सन्देह वेदों ने नष्ट कर दिया है। इसलिये हे तुलसीदास ! सब प्रकार की आशा छोड़कर श्रीराम का दास बन जा॥४॥