🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
गुप्तानंद जी लावनी Guptanand ji Lavni
Lavni Sun Barahmasi Bhajan lyrics
चैत चहत चितचोर को, चेला चतुर सुजान।
चित के मिले न चौधरी, भई चित में गलतान॥
चतुर क्या करी चतुर ने चतुराई,
हमारा चित चेत चकोर किया।
अपने चित चाँदनी चमकाई॥
चकचान अचानक चन्द चढ़ा,
चन्दा की चमक चित पर छाई।
चन्दा चहुँ ओर चकोर चला,
चित चेतन में गिरदी खाई॥
धरनी पर आया, चमक में खो दई काया।
चला गया चितचोर, चतुर जब तक चलने नहिं पाया॥
लावनी सुन बारहमासी।
कटै जासे जन्म मरण फाँसी॥
चैत में चिन्ता यह कीजै।
कि यह तन घड़ी घड़ी छीजेै॥
इससे करिए तनिक विचार।
सार वस्तु है क्या संसार?
सत्य वस्तु है आत्मा, मिथ्या जगत पसार।
नित्यानित्य विवेकिया, लीजै बात विचार॥
फिरै क्या मथुरा अरु काशी
लावनी सुन बारहमासी॥
वैसाख में वक्त तूने पाया,
यहां कोई रहन नहीं आया।
काल ने सबही को खाया,
यह सब झूठी है माया॥
भोग लोक परलोक का, सब ही त्यागे राग।
रहे न इनकी कामना, ताहि कहे बैराग॥
तितिक्षा तो सो परकासी,
लावनी सुन बारहमासी॥
जेठ में जतन यही करना,
मिटे जासे जनम और मरना।
मन इंद्रिय विषयों से परिहरना,
लीजिए सन्तों का सरना॥
श्रद्धा कर गुरु वेद में, कर मन का समाधान।
कर्म अकर्म के साधन त्यागे, सहे मान अपमान॥
जगत से रहना नित्य उदासी,
लावणी सुन बारहमासी॥
आषाढ़ में सत्संगति करना,
वहाँ तू पावे सब मर्मा।
तुझे वहाँ होवे जिज्ञासा,
तब लगे मोक्ष की आसा॥
परमानंद की प्राप्ति अरु अनर्थ का नास।
यह इच्छा मन में रहे, कहे मुमुक्षा तास॥
हानि हो जिससे चौरासी।
लावनी सुन। बारहमासी॥
सावन में शरणागत होना,
पैर सद्गुरु के धो पीना।
साफ जब होय तोहरा सीना,
रंग तब रहनी का दीना॥
तत्त्वमसि के अर्थ को तोय करूँ परकास।
संशय शोक मिटे तेरा, होय अविद्या नास॥
मिटे तब भरम भेद राशि।
लावनी सुन बारहमासी॥
महीना भादो का आया भरम सब छीजै।
गुरु की भक्ति चित्त धार प्रेम रस पीजै॥
ईश्वर से अधिक भक्ति गुरु की कीजै।
इस मानव तन को पाय सुफल कर लीजै॥
ब्रह्मवेता वक्ता सुरति, गुरु के लक्षण जान।
इच्छा राखे मोक्ष की, ताहि शिष्य पहचान॥
होय अमरापुर वासी।
लावनी सुन बारहमासी॥
क्वार में करना यही उपाई,
तत्त्वमसी श्रवणन मन लाई॥
जुगति से मनन करो प्यारे,
खुले जासे अन्दर के ताले।
निदिध्यासन के अन्त में, ऐसा होवे भान।
ब्रह्म आत्मा एक लख, तब होय ब्रह्म का ज्ञान॥
तहाँ मिथ्या जग नासी।
लावणी सुन बारहमासी॥
कार्तिक में कर्म सभी नासा।
ज्ञान जब उर में प्रकासा॥
तब अपना आप रूप भासा,
उसी का लखो तमाशा॥
आर पार हमरो नहीं, नहिं देश काल से अंत।
मैं ही अखंडित एक हूँ, सब वस्तु का तंत॥
मैं ही चेतन अविनासी।
लावनी सुन बारहमासी॥
अगहन में ज्ञान अगिनि जागी,
लोक सब दाहन कह लागी।
फूँक दिए ब्रह्मा अरु विष्नू,
फूँक दिए राम और कृष्नू॥
जलत जलत ऐसी जली, जाको आर न पार।
ईश्वर जीव ब्रह्म अरु माया, फूँक दियो संसार॥
बिना ईंधन के परकासी।
लावनी सुन बारहमासी॥
पूष में पूरन आपै आप,
नहिं तहाँ पुण्य अरु पाप।
कहो अब जपु कौन का जाप,
मिटा सब जनम मरण सन्ताप॥
ज्ञाता ज्ञान न ज्ञेय कछु, ध्याता ध्यान न ध्येय।
मम निज शुद्ध स्वरूप में, उपाध्येय नहिं हेय॥
करूँ फिर किसकी तल्लासी।
लावनी सुन बारहमासी॥
माघ में मिटी मिलन की भूख,
तहाँ पर नहिं आसिक माशूक।
इश्क फिर किसका होवे,
वृथा वक्त तू क्यों खोवे॥
व्यापक परमानन्द में, आशिक माशूक।
लक्ष्य रूप में मार निशाना, वृथा विलोवे थूक॥
करावै क्यों जग में हाँसी।
लावणी सुन बारहमासी॥
बसंत ऋतु फाल्गुन में आवे,
खेल यह प्रारब्ध रचवावे।
इत्र गुलाल ज्ञान रोरी,
खेलते भर-भर के झोरी॥
होली अविद्या फूँकि के, हो गये गुप्तानन्द।
समझे कोई सुघड़ विवेकी क्या समझे मतिमन्द॥
जगत की धूल उड़ी खासी।
लावनी सुन बारहमासी॥
लावनी सुन बारहमासी।
कटे जासे जन्म मरण फाँसी॥
🎙️तानसेन जी Tansen Ji