🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः 🌍🫂
Raghupati Bhakti Karat Kathinaai
विनय पत्रिका Tulsidas Vinay Patrika
रघुपति! भक्ति करत कठिनाई।
कहत सुगम करनी अपार,
जानै सोई जेहि बन आई॥
श्रीरघुनाथजी की भक्ति करने में बड़ी कठिनता है। कहना तो सहज है, पर उसका करना कठिन। इसे वही जानता है जिससे वह करते बन गयी।
जो जेहिं कला कुसलता कहँ,
सोई सुलभ सदा सुखकारी।
सफरी सन्मुख जल प्रवाह,
सुरसरी बहै गज भारी॥
जो जिस कला में चतुर हैं, उसी के लिये वह सरल और सदा सुख देने वाली है। जैसे (छोटी-सी) मछली तो गंगाजी की धारा के सामने चली जाती है, पर बड़ा भारी हाथी बह जाता है (क्योंकि मछलीकी तरह उसमें तैरना नहीं जानता)।
ज्यो सर्करा मिले सिकता महँ,
बल तैं न कोउ बिलगावै॥
अति रसज्ञ सूच्छम पिपीलिका,
बिनु प्रयास ही पावै॥
जैसे यदि धूल में चीनी मिल जाय तो उसे कोई भी जोर लगाकर अलग नहीं कर सकता, किन्तु उसके रसको जानने वाली एक छोटी-सी चींटी उसे अनायास ही (अलग करके) पा जाती है।
सकल दृश्य निज उदर मेलि,
सोवै निन्द्रा तजि जोगी।
सोई हरि पद अनुभवै परम सुख,
अतिसय द्रवै बियोगी॥
जो योगी दृश्यमात्र को अपने पेट में रख (ब्रह्ममें माया को समेटकर, परमेश्वररूप कारण में कार्यरूप जगत् का लय करके) (अज्ञान) निद्रा को त्यागकर सोता है, वही द्वैत से आत्यन्तिकरूप से मुक्त हुआ पुरुष प्रभु के परम पद के परमानन्द की अपरोक्ष अनुभूति कर सकता है।
सोक मोह भय हर्ष दिवस निसि,
देस काल तहँ नाहीं।
तुलसीदास यही दसाहीन,
संसय निर्मूल न जाहीं॥
इस अवस्था में शोक, मोह, भय, हर्ष, दिन-रात और देश-काल नहीं रह जाते। (एक सच्चिदानन्दघन प्रभु ही रह जाता है।) किन्तु हे तुलसीदास ! जब तक इस दशा की प्राप्ति नहीं होती, तब तक संशय का समूल नाश नहीं होता।
🚩निरंजनी अद्वैत आश्रम भाँवती🙏🏻