🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Yah Binti Raghuveer Gusai lyrics
तुलसीदास विनय पत्रिका Tulsidas
यह बिनती रघुबीर गुसाईं।
और आस-बिस्वास-भरोसो,
हरौ जीव जड़ताई॥
हे श्रीरघुनाथजी ! हे नाथ! मेरी यही विनती है कि इस जीव को दूसरे साधन, देवता या कर्मों पर जो आशा, विश्वास और भरोसा है, उस मूर्खता को आप हर लीजिए।
चहाँ न सुगति सुमति संपति कछु,
रिधि-सिधि बिपुल बड़ाई।
हेतु रहित अनुराग राम पद,
बढ़े अनुदिन अधिकाई॥
हे राम ! मैं शुभगति, सद्बुद्धि, धन-सम्पत्ति, ऋद्धि-सिद्धि और बडी भारी बडाई आदि कुछ भी नहीं चाहता। बस, मेरा तो आपके चरण कमलों में दिनोंदिन अधिक-से-अधिक अनन्य और विशुद्ध प्रेम बढ़ता रहे, यही चाहता हूँ।
कुटिल कर्म लै जाहिं मोहि,
जहँ जहँ अपनी बरिआई।
तहँ तहँ जनि छिन छोह छाँड़ियो,
कमठ अण्ड की नाईं॥
मुझे अपने बुरे कर्म जबरदस्ती जिस-जिस योनि में ले जायँ, उस-उस योनि में ही हे नाथ! जैसे कछुआ अपने अंडों को नहीं छोड़ता, वैसे ही आप पलभर के लिये भी अपनी कृपा न छोड़ना।
या जग में जहँ लगि या तनु की,
प्रीति प्रतीति सगाई।
ते सब 'तुलसिदास' प्रभु ही सों,
होहिं सिमिटि इक ठाईं॥
हे नाथ! इस संसार में जहाँ तक इस शरीर का (स्त्री-पुत्र-परिवारादि से) प्रेम, विश्वास और सम्बन्ध है, सो सब एक ही स्थान पर सिमटकर केवल आपसे ही हो जाय।
Bhajan Vinay Patrika lyrics
🚩निरंजनी अद्वैत आश्रम, भाँवती🙏🏻