🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Mayad Vo Tharo Poot Kathe Deshbhakti
महाराणा प्रताप देशभक्ति गीत Maharana Pratap
धरती धोरी री मीठे गीताँ री
रण वीराँ री शूर वीराँ री
अठे खून सस्तो है, पण पाणी महँगो
शीश कट्या धड़ लड़ रह्या
या शान है राजस्थान री
सगली दुनिया बोल रही है
या धरती है बलिदान री।
अमरसिंह राणा प्रताप
वीर दुर्गादास सरीखे वीराँ री...........
आ धरती है भक्ति में तप्योड़ी मीराँ री
इला देणी आपणी हालरिये हुलराय।
पूत सिखावे पालणे, मरण बड़ाई मांय।।
बेटे को झूला झुलाते हुए वीर माता कहती है पुत्र अपनी धरती जीते जी किसी को मत देना, इस प्रकार वह बचपन की लोरी में ही वीरता पूर्वक मरने की शान पुत्र को समझा देती है।
बेटा दूध उजाळियो, तू कट पड़ियो जुद्ध।
नीर न आवै मो नयन, पण थन आवै दूध।
माँ कहती है बेटे तू मेरे दूध को मत लजाना,युद्धमें पीठ मत दिखाना,वीर की तरह मरना तेरे बलिदान पर मेरे आँखों में आँसू नहीं पर हर्ष से मेरे स्तनों में दूध उमड़ेगा।
गिध्धणि और निःशंक भख, जम्बुक राह म जाह।
पण धन रो किम पेखही, नयन बिनठ्ठा नाह ।
युद्ध में घायल पति के अंगों को गिद्ध खा रहे हैं, इस पर वीर पत्नी गिद्धाणी से कहती है, तू और सब अंग खाना पर मेरे पति के चक्षु(आँखें) छोड़ देना ताकि वो मुझे चिता पर चढ़ते देख सके।
इदं राष्ट्राय स्वाहा..
इदं राष्ट्राय स्वाहा..
जब-जब भरतखण्ड की इस महान संस्कृति पर संकट के बादल मंडराये है या फिर इसकी अक्षुण्णता पर कोई भी आँख उठी, कलमकारों ने अपनी कलम की धार से चेतना की अलख जगाई है।
समय-समय पर कलमकारों नें अपने दायित्व बोध को दर्शाया है।
आज के परिवेश में जहाँ पाश्यात्य संस्कृति की आगोश में भारतीय संस्कृति का कहीं सूर्य डूबता नजर आ रहा है।भौतिकता के इस युग विलासिता अपने पाँव पसार रही है, तो कलमकारों की कलम फिर चली..और इसी कड़ी में मेवाड़ की धरा के महाभारती के लाड़ले सपूत कवि माधव ने यह साबित कर दिया कि वास्तव में कलम की धार तलवार की धार से तेज होती है..और एक सुंदर रचना लिख दी..
राष्ट्र जागरण के उद्देश्य से लिखी गयी इस रचना को आपको सुनाकर हम स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते है..तो प्रस्तुत है मायड़ भाषा में "मायड़ थारो वो पूत कठै"
हल्दी घाटी में समर लड़यो,
वो चेतक रो असवार कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे?
वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?
वो महाराणा प्रताप कठे?
मैं बाच्यों है इतिहासां में,
मायड़ थे एड़ा पुत जण्या,
अन-बान लजायो नी थारो,
रणधीरा वी सरदार बण्या,
बेरीया रा वर सु बादिळा,
सारा पड ग्या ऊण रे आगे,
वो झुक्यों नहीं नर नाहरियो,
हिन्दवा सुरज मेवाड़ रतन
वो महाराणा प्रताप कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे?
वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?
वो महाराणा प्रताप कठे?
या माटी हल्दी घाटी री,
लागे केसर और चंदन है,
माथा पर तिलक करो इण रो,
इण माटी ने नित वंदन है.
या रणभूमि तीरथ भूमि,
दर्शन करवा मन ललचावे,
उण वीर-सूरमाँ री यादाँ,
हिवड़ा में जोश जगा जावे,
उण स्वामी भक्त चेतक री टापा,
टप-टप री आवाज कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे?
वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?
वो महाराणा प्रताप कठे?
संकट रा दिन देख्या जतरा,
वे आज कुण देख पावेला,
राणा रा बेटा - बेटी न,
रोटी घास री खावेला
ले संकट ने वरदान समझ,
वो आजादी को रखवारो,
मेवाड़ भौम री पति राखण ने,
कदै भले झुकवारो,
चरणा में धन रो ढेर कियो,
दानी भामाशाह आज कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे?
वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?
वो महाराणा प्रताप कठे?
भाई शक्ति बेरिया सूं मिल,
भाई सूं लड़वा ने आयो,
राणा रो भायड़ प्रेम देख,
शक्ति सिंग भी हे शरमायों,
औ नीला घोड़ा रा असवार,
थे रुक जावो-थे रुक जावो
चरणा में आई प़डियो शक्ति,
बोल्यो मैं होकर पछतायो,
वो गळे मिल्या भाई-भाई,
जूं राम-भरत रो मिलन अठे,
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे?
वो महाराणा प्रताप कठे?
वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?
हल्दी घाटी रे किला सूं,
शिव-पार्वती रण देख रिया,
मेवाड़ी वीरा री ताकत,
अपनी निजरिया में तौल रिया,
बोल्या शिवजी - सुण पार्वती,
मेवाड़ भौम री बलिहारी,
जो आछा करम करे जग में,
वो अठे जनम ले नर नारी,
मूं श्याम एकलिंग रूप धरी,
सदियां सूं बैठो भला अठे
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे?
वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?
वो महाराणा प्रताप कठे?
मानवता रो धरम निभायो है,
भैदभाव नी जाण्यो है,
सेनानायक सूरी हकीम यू,
राणा रो चुकायो है,
अरे जात-पात और ऊंच-नीच री,
बात अया ने नी भायी ही,
अणी वास्ते राणा री प्रभुता,
जग ने दरशाई ही,
वो सम्प्रदाय सदभाव री,
मिले है मिसाल आज अठे
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे?
वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?
वो महाराणा प्रताप कठे?
कुम्भलगढ़, गोगुन्दा, चावण्ड,
हळदीघाटी ओर कोल्यारी
मेवाड़ भौम रा तीरथ है,
राणा प्रताप री बलिहारी,
हे हरिद्वार, काशी, मथुरा, पुष्कर,
गलता में स्नान करा,
सब तीरथा रा फल मिल जावे,
मेवाड़ भौम में जद विचरां,
कवि “माधव” नमन करे शत-शत,
मोती मगरी पर आज अठे,
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे?
वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?
वो महाराणा प्रताप कठे?
अरे आज देश री सीमा पर,
संकट रा बादळ मंडराया,
ये पाकिस्तानी घुसपेठीया,
भारत सीमा में घुस आया,
भारत रा वीर जवाना थे,
याने यो सबक सिखा दिजो,
थे हो प्रताप रा ही वंशज,
याने यो आज बता दिजो,
यो कशमीर भारत रो है,
कुण आंख दिखावे आज अठे
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे?
वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?
वो महाराणा प्रताप कठे?
हल्दी घाटी में समर लड़यो,
वो चेतक रो असवार कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे?
वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?
वो महाराणा प्रताप कठे?
🎙️प्रकाश माली Prakash Mali