🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Mansa Sattam Samraniyam Sanskrit
मनसा सततं स्मरणीयम्
वचसा सततं वदनीयमं।
लोकहितं मम करणीयं
लोकहितं मम करणीयम्॥
मन से सदा (मुझे) याद करना चाहिए। सोचना चाहिए। वाणी (मुँह) से सदा मुझे यह बोलना चाहिए कि मुझे लोक-कल्याण करना चाहिए।
न भोगभवने रमणीयं
न च सुखशयने शयनीयमं।
अहर्निशं जागरणीयम्
लोकहितं मम करणीयम्॥
मुझे भोग-विलास भवन में रमना चाहिए और न ही सुख से सोना चाहिए। मुझे दिन-रात जागना चाहिए और लोक-कल्याण करना चाहिए।
न जातु दु:खं गणनीयं
न च निजसौख्यं मननीयं।
कार्यक्षेत्रे त्वरणीयं
लोकहितं मम करणीयम्॥
मुझे कभी भी दुःख का ध्यान नहीं रखना चाहिए न केवल खुद के सुखों में मस्त रहना चाहिए। (लोक) कार्य के क्षेत्र में शीघ्रता करनी चाहिए। मुझे लोकहित करना चाहिए।
दु:खसागरे तरणीयम्
कष्टपर्वते चरणीयम्।
विपत्तिविपिने भ्रमणीयं
लोकहितं मम करणीयम्॥
मुझे दुःख रूपी सागर में तैरना चाहिए, संकट रूपी पर्वत पर चढ़ना चाहिए, संकट रूपी वन में घूमना चाहिए और संसार का कल्याण मुझे करना चाहिए।
गहनारण्ये घनान्धकारे
बन्धुजना ये स्थिता गह्वरे।
तत्रा मया संचरणीयम्
लोकहितं मम करणीयम्॥
जो भाई-बंधु घने अंधकार में, गहन वनों में गुफाओं में रहते हैं, वहाँ मुझे जाना चाहिए। ऐसा ढृढ़ संकल्प कर मुझे लोक-कल्याण करना चाहिए।
🚩जय श्री गुरु महाराज जी की🙏🏻