🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Bhai re ghar hi me ghar paya Dadu Dayal 78
भाई रे घर ही में घर पाया।
सहज समाइ रह्यो ता मांहीं, सद्गुरु खोज बताया॥
ता घर काज सबै फिर आया, आपै आप लखाया।
खोल कपाट महल के दीन्हें थिर सुस्थान दिखाया॥
भय औ भेद भर्म सब भागा, साँच सोइ मन लाया।
पिंड परै जहाँ जिव जावै, तामें सहज समाया॥
निश्चल सदा चलै नहिं कबहूँ, देख्या सब में सोई।
ताही सौं मेरा मन लागा, और न दूजा कोई॥
आदिअनंत सोइ घर पाया अब मन अनत न जाई।
दादू एक रंगै रंग लागा, तामें रह्या समाई॥
ब्रह्म रूप परमधाम का परिचय दे रहे हैं- हे भाई ! सद्गुरु जनों ने विचार द्वारा खोज करके बताया है, वह विश्व का निवास स्थान परब्रह्म रूप घर हमने शरीर रूप घर में ही प्राप्त किया है और सहजावस्था द्वारा उसी में समाये रहते हैं। उस परब्रह्म घर के लिये प्रथम हम अनेक स्थानों में तथा साधनों में फिर आये थे किन्तु अन्त में वह अपने आत्म-स्वरूप का विचार करने पर दिखाई दिया है। जब विचार ने हृदय-महल के अज्ञान रूप कपाट खोल दिये तब अचल ब्रह्म रूप स्थान दिखाई दिया है। अब तो भय और' भेद जन्य सारा भ्रम बुद्धि से भाग गया है और जो सत्य ब्रह्म है, उसी में मन लगा है। शरीर का राग गिरने पर मुक्तात्मा जहां जाता है वा शरीराध्यास दूर होने पर जीवात्मा जहां जाता है, उसी सहज स्वरूप ब्रह्म चिन्तन में मन समाया रहता है। जो सदा निश्चल रहता है, कभी भी चलायमान नहीं होता, उसी ब्रह्म को हमने सबमें देखा है और सभी अवस्थाओं में हमारा मन उसी में लगा रहता है। मन में अन्य वस्तु-चिन्तन वा दूसरा कोई भी विचार नहीं आता। संसार का आदि और अनन्त जो ब्रह्म रूप घर है, वही हमने पा लिया है। अब मन अन्यत्र' नहीं जाता। एक अद्वैत ब्रह्म रंग के समीप आत्मा रूप रंग लगकर अद्वैत भाव से उसी में समा गया है।