🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌏🫂
Bishay Baach Har Raach Samjh Man
नानक गुरबानी Nanak Gurbaani lyrics
बिषय बाच हर राच समझ मन बौरा।
निर्भय होइ न हरि भजे मन बौरा रे...
गहिओ न राम जहाज॥
हे मूर्ख मन! समझदार बन, विषयों से बचा रह और प्रभु में जुड़ा कर। तू सहम छोड़के क्यूँ परमात्मा को नहीं स्मरण करता और क्यूँ प्रभु का आसरा नहीं लेता?
काल बूत की हस्तिनी मन बौरा...,
चलत रचिओ जगदीस।
काम सुआइ गज बस परे मन.....,
अंकुस सहिओ सीस॥
अरे पागल मन! ये जगत परमात्मा ने एक खेल बनाई है जैसे (लोग हाथी को पकड़ने के लिए) कलबूत (मिट्टी) की हथिनी बनाते हैं; उस हथिनी को देख के काम-वासना के कारण हाथी पकड़ा जाता है और अपने सिर पर सदा महावत का अंकुश बर्दाश्त करता है, वैसे ही हे पागल मन! तू भी मन-मोहनी माया में फँस के दुःख सहता है।
मर्कट मुष्टी अनाज की मन बौरा रे,
लीनी हाथ पसार।
छूटन को सहसा परिआ मन बौरा,
नाचिओ घर घर बार॥
नोट: लोग बंदरों को पकड़ने के लिए संकरे मुँह वाला बरतन ले के जमीन में दबा देते हैं, उसमें भुने हुए चने डाल के मुँह खुला रखते हैं। बंदर अपना हाथ बरतन में डाल कर दानों की मुट्ठी भर लेता है। पर, भरी हुई मुट्ठी सँकरे मुंह मेंसे निकल नहीं सकती और लोभ में फंसा हुआ बंदर दाने भी नहीं छोड़ता। इस तरह वहीं पकड़ा जाता है। ठीक यही हाल मनुष्य का होता है, धीरे-धीरे माया में मन फँसा के आखिर और-और माया की खतिर हरेक की खुशामद करता है। उस लालच के कारण अब हरेक घर के दरवाजे पर नाचता फिरता है।
ज्यों नलनी सूअटा गहिओ मन...
माया एह ब्योहार।
जैसा रंग कुसुम्भ का मन बौरा...
त्यों पसरिओ पासार॥
नलिनी तोतों को पकड़ने वाले लोग लकड़ी का एक छोटा-सा ढोल बनाके दोनों तरफ से डण्डों के आसरे खड़ा कर देते हैं। बीच में तोते के लिए चुग्गा डाल देते हैं, और इस ढोल जैसे के नीचे पानी का भरा हुआ बरतन रखते हैं। तोता चुगे की खातिर उस चक्कर पर आ बैठता है। पर तोते के भार से चक्कर उलट जाता है, तोता नीचे की तरफ लटक पड़ता है। नीचे पानी देखके तोता सहम जाता है कि कहीं पानी में गिर के डूब ना जाऊँ। इस डर के कारण लकड़ी के यंत्र को कसके पकड़े रखता है और फँस जाता है। यही हाल मनुष्य का है। पहले ये रोजी सिर्फ निर्वाह की खातिर कमाता है। धीरे-धीरे ये सहम बनता है कि अगर ये कमाई बह गयी तो क्या होगा, वृद्धावस्था के लिए अगर बचा के ना रखा तो कैसे गुजारा होगा। इस सहम में पड़ के मनुष्य माया के मोह के पिंजरे में फँस जाता है। कुसंभ एक किस्म का फूल है, इससे लोग कपड़े रंगा करते थे, रंग खासा भड़कीला होता है, पर एक-दो दिनों में ही फीका पड़ जाता है। हे कमले मन! जैसे कुसंभ कारंग (थोड़े ही दिन रहता) है, इसी तरह जगत का पसारा चार दिन के लिए ही बना हुआ है।
नहावन को तीरथ घने मन बौरा रे,
पूजन को बहु देव।
कहो कबीर छूटन नहीं मन बौरा रे,
छूटन हरि की सेव॥
हे कबीर! कह: हे बावरे मन! जीव माया के मोह में फँस के अकाल-पुरख को बिसार देता है, और कई किस्म के दुःख सहता है। फिर इन दुःखों से बचने के लिए कहीं तीर्थों के स्नान करता फिरता है, कहीं देवी-देवताओं की पूजा करता है, पर दुखों से बचाव नहीं होता। इनका इलाज एक प्रभु की याद ही है क्योंकि ये सहम होते ही तब हैं जब जीव प्रभु को भुला देता है।
🚩निरंजनी अद्वैत सेवा संस्थान, भाँवती🥀
🎙️सतविंदर सिंह Satwinder Singh