🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Nahi re ham nahi Dadu Dayal Vani 393
काँचा उछले उफने, काया हांडी मांहि।
'दादू' पाकां मिल रहे, जीव ब्रह्म दो नांहि॥
नाहीं रे हम नाहीं रे, सत्यराम सब मांहीं रे॥
नाहीं धरणि अकाशा रे, नाहीं पवन प्रकाशा रे।
नाहीं रविशशि तारा रे, नांहिं पावक प्रजारा रे॥
नाहीं पञ्च पसारा रे, नाहीं सब संसारा रे।
नहिं काया जीव हमारा रे नहिं बाजी कौतुकहारा रे॥
नाहीं तरुवर छाया रे, नहीं पंखी नहीं माया रे।
नाहीं गिरिवर वासा रे, नांहिं समंद निवासा रे॥
नाहीं जल थल खण्डा रे, नाहीं सब ब्रह्मंडा रे।
नाहीं आदि अनन्ता रे, दादू राम रहन्ता रे॥
ज्ञान प्रलय का स्वरूप दिखा रहे हैं- हम जिस रूप से दिखाई दे रहे हैं, उस रूप से सत्य नहीं हैं। जो हम सब में आत्म स्वरूप राम हैं, वे ही सत्य हैं। पृथ्वी, आकाश, वायु, प्रकाश, प्रकाश के हेतु सूर्य, चन्द्र और तारे सत्य नहीं हैं। भली भांति जलाने वाली अग्नि सत्य नहीं हैं। वृक्ष, उनकी छाया, पक्षी, श्रेष्ठ पर्वत तथा उनमें निवास, समुद्र और समुद्र में निवास, जल और जल के बीच नाना द्वीप रूप स्थल खण्ड, सब ब्रह्माण्ड, पंच भूतों का फैलाव सब संसार, काया, हमारा जीवत्व भाव इत्यादिक संसार रूप खेल और माया सत्य नहीं हैं। जब संसार रूप खेल सत्य नहीं है, तब उसका कर्त्ता ईश्वर भाव सत्य नहीं है, कारण वह भी माया उपाधि से ही भासता है। अतः जो आदि-अन्त से रहित अनन्त निरंजन राम हैं, वे ही सत्य रूप से रहते हैं।