🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः 🌍🫂
Deen Ko Dayaalu Dev Dusro Na Kau
Tulsidas Bhajan तुलसीदास राम भजन
दीन को दयालु देव दानि दूसरो न कोऊ।
जाहि दीनता कहौं मैं देखौं दीन सोऊ॥
हे रामजी ! दीनों पर दया करने वाला और उन्हें परमसुख देने वाला दूसरा कोई नहीं है । मैं जिसको अपनी दीनता सुनाता हूँ उसी को दीन पाता हूँ । (जो स्वयं दीन है वह दूसरे को क्या दे सकता है ?)
सुर नर मुनि असुर नाग साहिब तौ घनेरे।
पै तौ लौं जौ लौं रावरे न नेकु नयन फेरे॥
देवता, मनुष्य, मुनि, राक्षस, नाग आदि मालिक तो बहुतेरे हैं, पर वहीं तक हैं जब तक आपकी नजर तनिक भी टेढ़ी नहीं होती । आपकी नजर फिरते ही वे सब भी छोड़ देते हैं ।
त्रिभुवन तिहुँकाल बिदित बेद बदति चारी।
आदि अन्त मध्य राम साहबी तिहारी॥
तीनों लोकों में तीनों काल सर्वत्र यही प्रसिद्ध है और यही चारों वेद कह रहे हैं कि आदि, मध्य और अन्त में, हे रामजी ! सदा आपकी ही एक-सी प्रभुता है।
तोहि माँगि माँगनो न माँगनो कहायो।
सुन सुभाव सील जसु जाँचनजन आयो॥
जिस भिखमंगे ने आपसे माँग लिया, वह फिर कभी भिखारी नहीं कहलाया । (वह तो परम नित्य सुख को प्राप्तकर सदा के लिए तृप्त और अकाम हो गया) आपके इसी स्वभाव शील का सुन्दर यश सुनकर यह दास आपसे भीख माँगने आया ।
पाहन पसु बिटप बिहंग अपने कर लीने।
महाराज दसरथ के ! रंक राय कीन्हे॥
आपने पाषाण (अहल्या), पशु (बंदर -भालू), वृक्ष (यमलार्जुन) और पक्षी (जटायु, काकभुशुण्डि) तक को अपना लिया है । हे दाशरथि ! आपने नीच रंकों को राजा बना दिया है ।
तू गरीब को निवाज, हौं गरीब तेरो।
बारक कहिये कृपालु ! तुलसिदास मेरो॥
आप गरीबों को निहाल करने वाले हैं और मैं आपका गरीब हूँ । हे कृपालु ! (इसी नाते) एक बार यही कह दीजिए कि 'तुलसीदास मेरा है'।
🚩श्री निरंजनी अद्वैत आश्रम भाँवती🙏🏻
🎙️गौतम चटर्जी Gautam Chatterjee
प्रदीप श्रीवास्तव Pradeep Shrivastava