🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नम:🌍🫂
Jankees Ki Kripa Jagavati Sujaan Jeev
तुलसीदास विनय पत्रिका Tulsidas lyrics
जानकीस की कृपा जगावती सुजान जीव!
जागि त्यागि मूढ़ताऽनुरागु श्री हरे ।
करि बिचार तजि बिकार भजु उदार रामचंद्र,
भद्रसिन्धु दीनबन्धु, बेद बदत रे ॥१॥
(श्रीराम नाम के आश्रित) चतुर जीवों को श्रीरामजी की कृपा ही (अज्ञानरूपी निद्रा से) जगाती है, (अतएव राम नाम के प्रभाव से) मूर्खता को त्यागकर जाग और श्रीहरि के साथ प्रेम कर । नित्यानित्य वस्तु का विचार करके, काम-क्रोधादि समस्त विकारों को छोड़कर कल्याण के समुद्र, दीनबन्धु, उदार श्रीरामचन्द्रजी का भजन कर, यही वेद की आज्ञा है।
मोहमय कुहू निसा बिसाल काल बिपुल सोयो,
खोयो सो अनूप रूप सुपन जू परे ।
अब प्रभात प्रगट ग्यान भानु के प्रकाश,
बासना राग मोह-द्वेष निबिड़ तम टरे ॥२॥
मोहमयी अमावस्या की लंबी रात्रि में सोते हुए तुझे बहुत समय बीत गया और माया स्वप्न में पड़कर तू अपने अनुपम आत्मस्वरूप को भूल गया । देख अब सबेरा हो गया है और ज्ञानरूपी सूर्य का प्रकाश होते ही वासना, राग, मोह और द्वेषरूपी घोर अन्धकार दूर हो गया है।
भागे मद मान चोर भोर जानि जातुधान काम-कोह-लोभ-छोभ-निकर अपडरे ।
देखत रघुबर प्रताप, बीते सन्ताप पाप,
ताप त्रिबिध प्रेम आप दूर ही करे ॥३॥
प्रातः काल हुआ समझकर गर्व और मानरूपी चोर भागने लगे तथा काम, क्रोध, लोभ और क्षोभरूपी राक्षसों के समूह अपने आप डर गये। श्रीरघुनाथजी के प्रचण्ड प्रताप को देखते ही पापसन्ताप नष्ट हो गये और तीन प्रकार के ताप श्रीरामजी के प्रेमरूपी जल ने शान्त कर दिये।
श्रवन सुनि गिरा गंभीर,
जागे अति धीर बीर,
बर बिराग-तोष सकल सन्त आदरे ।
'तुलसिदास' प्रभु कृपालु,
निरखि जीव जन बिहालु,
भंज्यो भवजाल परम मंगलाचरे ॥४॥
इस गम्भीर वाणी को कानों से सुनकर धीर-वीर संत मोहनिद्रा से जाग उठे और उन्होंने सुन्दर वैराग्य, सन्तोष आदि को आदर से अपना लिया। हे तुलसीदास ! कृपामय श्रीरामचन्द्रजी ने भक्त जीवों को व्याकुल देखकर संसाररूपी जाल तोड़ डाला और उन्हें परमानन्द प्रदान करने लगे।
🚩निरंजनी अद्वैत आश्रम भाँवती🥀
🎙️प्रणव गीत Pranav Geet Vinay Patrika
राग विभास Raag Vibhaas