🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Jo re bhai ram daya nahi karte Dadu Dayal17
जो रे भाई राम दया नहिं करते।
नवका नाम खेवट हरि आपै, यों बिन क्यों निस्तरते॥
करणी कठिन होत नहिं मोपैं, क्योंकर ये दिन भरते।
लालच लाग परत पावक में, आपहि आपैं जरते॥
स्वादहि संग विषय नहिं छूटै, मन निश्चल नहिं धरते।
खाय हलाहल सुख के तांई, आपैं हीं पच मरते॥
मैं कामी कपटी क्रोध काया में कूप परत नहिं डरते।
करवत काम शीश धर अपने, आपहि आप विहरते॥
हरिअपना अंगआप नहिं छाड़े, अपनीआप विचरते।
पिता क्यों पूत को मारै, दादू यों जन तिरते॥
साक्षात्कार होने पर उपकार दर्शन रूप विनय कर रहे हैं- हे भाई! यदि राम दया नहीं करते तो नाम-नौका देकर वे हरि स्वयं ही केवट कैसे बनते? और ऐसा नहीं करते तो हम संसार से कैसे पार होते ? हठयोगादिक कठिन कर्त्तव्य तो हम से होता नहीं। फिर ये वियोग जन्य दुःख पूर्ण जीवन के दिन कैसे पूरे करते ? लोभ में लग कर अपने आप ही चिन्ताग्नि में पड़कर जलते रहते। विषयों के स्वाद के संसर्ग से विषयों का त्याग नहीं होता और मन को स्थिर करके भगवद् भजन में नहीं रख पाते, सुखाशा से विषय रूप महा विष खाकर, सांसारिक कार्यों में ही पच-पच कर मर जाते। अहंकार' के कारण शरीर में आसक्त हो, कामी, कपटी और क्रोधी बनकर संसार कूप में पड़ने से कभी भी नहीं डरते तथा काम रूप आरा अपने अहंकार रूप शिर पर रखकर आप ही अपने को विदीर्ण करते रहते। किन्तु स्वयं हरि अपना भक्त-वत्सलतादि लक्षण' नहीं छोड़ते, वे अपनी नीति में आप ही चलते रहते हैं अर्थात् भक्तों का उद्धार करते रहते हैं। ठीक तो है परम-पिता परमेश्वर भक्त-पुत्रों को कैसे मार सकते हैं? वे तो उद्धार ही करते हैं। इस प्रकार भगवान् की कृपा से भक्तजन संसार से पार होते हैं।