🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Gur Poora Milaave Mera Preetam
नानक गुरबानी Nanak Gurbaani lyrics
गुरु पूरा मिलावे मेरा प्रीतम।
हौं वार वार अपने गुरु को जासा॥
मैं प्रभु मिलण प्रेम मन आसा।
हौं वार वार अपने गुरु को जासा॥
सेज एक एको प्रभु ठाकुर।
गुरमुख हरि रावे सुख सागर॥
मैं अवगुण भरपूर शरीरे।
हौं किउ कर मिले अपने प्रीतम पूरे॥
जिन गुणवन्ती मेरा प्रीतम पाइया।
सो मैं गुण नाहीं हौं क्यों मिला मेरी माइआ॥
हौं करि करि थाका उपाव बहुतेरे।
'नानक' गरीब राखहुँ हरि मेरे॥
🚩 श्री निरंजनी अद्वैत आश्रम भाँवती🥀
गुरु पूरा मिलावे मेरा प्रीतम।
मैं वार-वार अपने गुरु को जासा!
गुरु रामदास जी कहते हैं की पूरा गुरु ही साधक को परमात्मा से मिलवा सकता है और मैं ऐसे गुरु पर बलिहारी जाता हूँ।
पूरा गुरु कैसे मिले और पूरे गुरु की क्या पहचान है यह हमेशा से शिष्यों के लिए एक अहम प्रश्न रहा है! ‘अगर तुम शिष्य हो तो सद्गुरु तुमसे बच नहीं सकता। इसलिए बजाय इसके कि तुम ये खोजो की कौन पूरा गुरु है, तुम ये विचार करो की क्या तुम पूरे शिष्य हो? तुम जो खोजने चले हो उसके प्रति कितने गम्भीर हो? तुम जो पाने चले हो उसके लिए क्या खोने के लिए राज़ी हो? तुम्हारी प्राथमिकता क्या है – संसार या परमात्मा? अगर परमात्मा तुम्हारी प्राथमिकता है तो संसार रहे या जाए क्या फ़र्क पड़ता है। परमात्मा जैसी अमूल्य वस्तु के लिए अगर कोई संसार को मूल्य देता है तो उसे शिष्य कदापि नहीं कहा जा सकता और ऐसा शिष्य सदैव झूठे गुरुओं के चंगुल में फँसता है जो उसकी कामना और वासना को बढ़ाकर उसका शोषण करते हैं। ऐसा शिष्य एक सदगुरु के पर टिक ही नहीं सकता’
एक बार एक गाँव में एक गुरु आया और जल्दी ही वो बहुत प्रसिद्ध हो गया। सब उसका बहुत सम्मान करते, अच्छे से अच्छा भोजन उसके लिए उपलब्ध करते और नतमस्तक हो दिन-रात उसकी सेवा करते। इसका कारण था कि वो कहता था कि जिसे भी परमात्मा से मिलना हो वो उसके साथ चले उसे तुरन्त परमात्मा से मिलवा दिया जाएगा। तुरंत परमात्मा से मिलने को कोई राज़ी नही था। मिलना तो सभी चाहते थे लेकिन अभी नही, बल्कि फिर कभी। अभी तो घर है, परिवार है, नौकरी, दफ़्तर जाना है, पद-प्रतिष्ठा पाना है, धन कमाना है। कोई भी अभी परमात्मा को जानने के लिए उत्सुक्त नही था इसलिए दान-दक्षिणा देकर गुरु को निपटा देते थे इसलिए गुरु को कोई समस्या नहीं थी।
लेकिन फिर एक दिन एक युवक आया और उसने कहा कि मैं तैयार हूँ अभी परमात्मा से मिलने के लिए। गुरु को पहली बार ऐसा आदमी मिला था इसलिए चिन्ता तो उसे हुई। गुरु ने बहुत कोशिश की उस युवक को डराने की, साधना के कष्ट बताएँ मगर युवक भी पक्का खोजी था सो उसने कहा कि जो चाहे हो वो सब कुछ दाँव पर लगाने के लिए तैयार है। गुरु न चाहते हुए उसे अपने साथ ले गया ये सोच कर की दो-चार दिन में भाग जाएगा, मगर युवक रुका ही रहा, जो कुछ भी उसे करने को कहा गया उसने किया। आख़िरकार गुरु को अपना सत्य बताना ही पड़ा कि उसे परमात्मा के संबंध में कुछ नही पता। वो तो गाँव में इसी कारण से टिका हुआ था क्योंकि कोई भी परमात्मा को पाना नहीं चाहता था इसलिए मुझको कोई परेशानी नहीं थी। ना लोगों को परमात्मा को पाना था न गुरु को परमात्मा का पता था इसलिए खूब अच्छी जोड़ी बनती थी गुरु और गाँव वालों की – झूठा गुरु और झूठे शिष्य।
कबीर साहब के बारे में ज्ञात है की बड़ी मुश्किल से गुरु रामानन्द ने उन्हें शिष्य रूप में स्वीकार किया, मगर जब एक बार स्वीकार कर चुके तो कबीर साहब ने अपने सद्गुरु को प्रार्थना करते हुए कहा:
ओ गुरु रामानंद जी, समझ पकड़ियो मोरी बैयाँ
जो बालक रुनझुनियाँ खेलें, वो बालक हम नैइयाँ
बाँह पकडो तो समझ पकड़ियो फेर छूटन की नैइयाँ!
भक्त कबीर अपने गुरु से कह रहे हैं कि उन्हे वे खिलौनो से खेलने वाला बच्चा न समझे वे पक्के शिष्य हैं, इसलिए अगर उनकी बाँह पकड़ते हो तो ये जानकर पकड़ना की ये बाँह फिर न छूट पाए।
गुरु की महिमा के बारे में कबीर साहब बहुत कुछ कह चुके हैं इसलिए मैं सिर्फ़ इतना ही कहूँगा की मैं बहुत सौभाग्यशाली हूँ की मुझे मेरे सदगुरु मिले जिनकी असीम कृपा हम पर हमेशा बरसती रहती है। मैं भी वही कहना चाहूँगा जो गुरु नानक देवजी ने कहा है:
मेरे सतगुरा हौं तुध ऊपर कुर्बान
तेरे दर्शन को बलिहारणै, कौउ दित्ता अमृत नाम!
🎙️हरजिंदर सिंह Harjinder Singh