🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Kaahe Re Ban Khojan Jaayi
Nanak Bhajan नानक सबद
Gurbaani गुरबानी
काहे रे ! बन खोजन जाई।
सरब-निवासी सदा अलेपा,
तोही सङ्ग समाई.............
गुरु तेग बहादुर कहते हैं, हे मानव ! तुझे प्रभु की खोज के लिए जंगलों में भटकने की क्या आवश्कता है। वह तो सभी में निवास करता हुआ भी सदा निर्लिप्त है।
पुहुप मध्य ज्यों बास बसत है,
मुकुर माहिं जैसे छाँई।
तैसे ही हर बसे निरन्तर,
घट ही खोजहुँ भाई॥
जिस तरह फूलों में सुगन्धि एवं दर्पण में हमारी परछाई छिपी है, उसी प्रकार वह परमात्मा भी तुम्हारे संग तुम्हारे ही अंतर में छिपा हुआ है। उस परमात्मा की खोज भी अपने अंतर में ही करो।
बाहर भीतर एको जानहुँ,
इह गुरु ज्ञान बताई।
जन नानक बिनु आपा चीन्हें,
मिटै न भ्रम की काई॥
बाहर भीतर सर्वत्र एक परमात्मा को जानो, सद्गुरु के अमृतरूपी वचनों से ऐसा ज्ञान प्राप्त होता है। स्वयं को जाने बिना भ्रम रूपी काई दूर नहीं हो सकती।
सब कुछ घर में बाहर नाही।
बाहर डोले सो भर्म भुलाही॥
गुर प्रसादी जिन अंतर पाया
सो अन्तर बाहर सुहैला जी।
घर में सब कुछ है। परे कुछ भी नहीं है। जो बाहर खोजता है वह संदेह से भ्रमित होता है। गुरु की कृपा से जिसने भीतर प्रभु को पा लिया है, वह भीतर और बाहर सुखी है।
फरीदा जंगल जंगल क्या भंवै
वन कंटा मोड़ही।
बसे रब हिय आलये
जंगल क्या ढूँढेंही॥
फरीद, तुम काँटेदार वृक्षों से टकराते हुए जंगल-जंगल क्यों भटकते हो? वो प्रभु तो हृदय में रहता है; तुम उसे जंगल में क्यों ढूंढ रहे हो?
मन रे थिर रहो मत कत जाई जियो
बाहर ढूँढत बहुत दुःख पावै
घर अमृत माहीं जियो॥
गुरु बिनु घोर अन्धारु, गुरु बिनु समझ न आवै।
गुर बिनु सुरति न सिद्धि गुरु बिनु मुक्ति न पावै॥
🚩 श्री निरंजनी अद्वैत आश्रम भाँवती🙏🏻
🎙️व्यास मौर्य Vyas Maurya
🎙️गुलाम अब्बास खां Ghulam Abbas khan