🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Kaath Ki Putri Kaah Kare Nanak
नानक गुरबानी Shabad Gurbaani lyrics
काठ की पुतरी काह करै बपुरी
खिलावनहारो जानै॥
ओ अबिनासी राया (राजा)।
यह प्राणी बेचारा काठ की पुतली है, इसे खिलाने वाला (प्रभु) सब कुछ जानता है। हे मेरे प्रभु! तुम एक वह राजा हो जो सदैव अनश्वर हो।
निर्भय संग तुम्हारै बसते,
यह डरन कहाँ ते आया॥
एक महल तू होहि अफारो,
एक महल निमानो।
एक महल तू आपे आपै,
एक महल गरीबानो॥
एक महल तू पंडित बकता,
एक महल खल होता॥
हम (प्राणी) निडर होकर तेरे साथ निवास करते हैं। फिर यह भय कहाँ से आता है। एक शरीर में तुम ही अभिमानी हो और एक दूसरे शरीर में तुम मान से रहित हो। एक शरीर में तुम सर्वेसर्वा हो और दूसरे शरीर में तुम बिल्कुल गरीब हो। एक शरीर में तुम विद्वान एवं वक्ता हो। एक शरीर में तुम मूर्ख हो।
एक महल तू सब कछु ग्राहज,
एक महल कछु न लेता॥
जैसा भेख करावै बाजीगर,
ओह तैसो ही साज आनै।
अनेक कोठरी बहुत भाँति करीआ,
आपि होआ रखवारा।
जैसे महल राखै तैसै रहना,
किआ इह करै बिचारा॥
एक शरीर में तुम सब कुछ संग्रह कर लेते हो और एक शरीर में तुम संन्यासी बनकर कोई पदार्थ भी स्वीकार नहीं करते हो। बाजीगर (बाजी खिलाने वाला प्रभु) जैसा स्वांग रचाता है, वह प्राणी वैसा ही स्वांग रचता है अर्थात् जैसी भूमिका (संसार में) प्रभु निभाने के लिए प्राणी को देता है, वैसे ही भूमिका प्राणी संसार मे निभाता है। ईश्वर ने (संसार में विभिन्न योनियों के प्राणियों की) अनेक (देही) कोठड़ियाँ बना दी हैं और ईश्वर स्वयं ही सबका रक्षक बना हुआ है। जैसे शरीररूपी मन्दिर में प्रभु प्राणी को रखता है, वैसे ही वह वास करता है। यह प्राणी बेचारा क्या कर सकता है?
बाजीगर स्वांग सकेला,
अपने रंग रहवै अकेला॥
बाजीगर डंक बजाई।
सभी खलक तमासै आई॥
जिनि कछु कीआ सोई जानै,
जिनि इह सब बिधि साजी।
कहुँ 'नानक' अपरम्पार स्वामी,
कीमति अपुने काजी॥
जब बाजीगर-परमात्मा अपनी खेल सृष्टि का विनाश करके समेट लेता है। वह अकेला ही अपने रंग में मग्न रहता है। जब बाजीगर-परमात्मा अपनी डुगडुगी बजाता अर्थात् जगत-रचना करता है तो सारी दुनिया जीवन का तमाशा देखने के लिए आ जाती है। जिस प्रभु ने सृष्टि की रचना की है, जिसने यह सारा खेल बनाया है, वही उसके भेद को जानता है। हे नानक! वह प्रभु अपरंपार है। अपने कार्यों का मूल्य वह स्वयं ही जानता है।
🚩निरंजनी अद्वैत सेवा संस्थान, भाँवती🥀
🎙️मनिंदर सिंह Maninder Singh