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Aise Ram Deen Hitkaari तुलसीदास
Tulsidas Vinay Patrika विनय पत्रिका
ऐसे राम दीन हितकारी।
अतिकोमल करुनानिधान बिनु कारन पर-उपकारी॥
दीनों का ऐसा हित करने वाले श्रीरामचन्द्रजी हैं, वे अति कोमल, करुणा के भण्डार और बिना ही कारण दूसरों का उपकार करने वाले हैं।
साधनहीन दीन निज अघबस, सिला भई मुनिनारी।
गृह ते गवनि परसि पद पावन, घोर शाप ते तारी॥
साधनों से रहित, दीन, गौतम ऋषि की स्त्री अहल्या, अपने पापों के कारण शिला हो गयी थी। उसे आपने घर से चलकर, अपने पवित्र चरण से छूकर, घोर शाप से छुड़ा दिया॥२॥
हिंसारत निषाद तामस बपु, पशु समान बनचारी।
भेंट्यो हृदय लगाइ प्रेमबस, नहिं कुल जाति बिचारी॥
हिंसा में रत गुह निषाद जिसका तामसी शरीर था और जो पशु की तरह वन में फिरता रहता था, उसे आपने वंश और जाति का विचार किये बिना ही प्रेम के वश होकर हृदय से लगा लिया॥३॥
जद्यपि द्रोह कियो सुरपति-सुत, कहि न जायअति भारी।
सकल लोक अवलोकि सोकहत, सरन गये भय टारी॥
यद्यपि इन्द्र के पुत्र जयन्त ने (काकरूप से श्रीसीताजी के चरण में चोंच मारकर) इतना भारी अपराध किया था कि कुछ कहा नहीं जा सकता तथापि जब वह (बाण के मारे घबराकर रक्षा के लिये) सब लोकों को देख फिरा और फिर शोक से व्याकुल होकर शरण में आया, तब उसका सारा भय दूर कर दिया।
बिहंग जोनि आमिष अहार पर, गीध कौन ब्रतधारी।
जनक-समान क्रिया ताकी, निज कर सब भाँति सँवारी॥
जटायु गीध पक्षी की योनि का था, सदा मांस खाया करता था। उसने ऐसा कौन-सा व्रत धारण किया था कि जिसकी आपने अपने हाथ से, पिता के समान अन्त्येष्टि-क्रिया कर सब बातें सुधार दी अर्थात् मुक्ति प्रदान कर दी॥५॥
अधम जाति सबरी जोषित जड़, लोक-बेद तें न्यारी।
जानि प्रीति दै दरस कृपानिधि, सोउ रघुनाथ उधारी॥
शबरी नीच जाति की जड़ स्त्री थी। जो लोक और वेद दोनों से ही बाहर थी, परन्तु उसका सच्चा प्रेम समझकर कृपालु रघुनाथजी ने उसे भी कृपापूर्वक दर्शन देकर उद्धार कर दिया॥६॥
कपि सुग्रीव बन्धु भय ब्याकुल, आयो सरन पुकारी।
सहि न सके दारुन दुख जनके, हत्यो बालि सहि गारी॥
सुग्रीव बन्दर अपने भाई (बालि) के भय से व्याकुल होकर जब पुकारता हुआ आपकी शरण में आया, तब आप अपने उस दास का दारुण दुःख नहीं सह सके और गालियाँ सहकर भी बालिका वध कर डाला॥७॥
रिपु को अनुजबिभीषन निशिचर कौन भजनअधिकारी।
सरन गये आगे है लीन्हों, भेंट्यो भुजा पसारी॥
विभीषण, शत्रु (रावण) का भाई था और जाति का राक्षस था! वह किस भजन का अधिकारी था ? किन्तु जब वह आपकी शरण में आया तब आपने उसे आगे बढ़कर लिया और भुजा पसारकर हृदय से लगाया॥८॥
असुभ होइ जिन्हके सुमिरे, ते बानर रीछ बिकारी।
बेद-बिदित पावन किये ते सब, महिमा नाथ तुम्हारी॥
बन्दर और रीछ ऐसे अधर्मी हैं कि उनका नामतक लेने से अमंगल होता है, किंतु हे नाथ! उनको भी आपने पवित्र बना दिया। वेद इस बातके साक्षी हैं। यह सब आपकी महिमा है॥९॥
कहँ लग कहौं दीन अगनित जिन्ही तुम बिपति निवारी।
कलिमल-ग्रसित 'दास तुलसी' पर, काहे कृपा बिसारी?
मैं कहाँ तक कहूँ ऐसे असंख्य दीन हैं, जिनकी विपत्तियाँ आपने दूर कर दी हैं, किन्तु न जाने इस तुलसीदास पर, जो कलियुग के पापों से जकड़ा हुआ है, आप कृपा करना क्यों भूल गये॥१०॥
🚩निरंजनी अद्वैत आश्रम, भाँवती🙏🏻