🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Aisi Mudhta Ya Man Ki Tulsidas lyrics
ऐसी मूढ़ता या मन की॥
परिहरि रामभगति-सुरसरिता,
आस करत ओस कनइस मन की ऐसी मूर्खता है कि यह राम भक्तिरूपी गंगा जी को छोड़कर ओस की बूँदों से तृप्त होने की आशा करता है।
धूमसमूह निरखि चातक ज्यों,
तृषित जानि मति घन की।
नहि तहँ सीतलता न बारि,
पुनि हानि होति लोचन की॥
जैसे प्यासा पपीहा धुएँ का गोट देखकर उसे मेघ समझ लेता है, परंतु वहाँ न तो उसे शीतलता मिलती है और न जल मिलता है, धुएँ से आँखें और फूट जाती हैं। यही दशा इस मन की है।
ज्यों गच-काँच बिलोकि सेन,
जड़ छाँह आपने तन की।
टूटत अति आतुर आहार बस,
छति बिसारि आनन की॥
जैसे मूर्ख बाज काँच की फ़र्श में अपने ही शरीर की परछाईं देखकर उस पर चोंच मारने से वह टूट जाएगी, इस बात को भूख के मारे भूलकर जल्दी से उस पर टूट पड़ता है (वैसे ही यह मेरा मन भी विषयों पर टूट पड़ता है)।
कहँ लौं कहौं कुचाल कृपानिधि,
जानत हौ गति जन की।
तुलसीदास प्रभु हरौ दुसह दु:ख,
करौ लाज निजपन की॥
हे कृपा के भंडार! इस कुचाल का मैं कहाँ तक वर्णन करूँ? आप तो दासों की दशा जानते ही हैं।
हे स्वामिन्! तुलसीदास का दारुण दुःख हर लीजिए और अपने शरणागत-वत्सलता के प्रण की रक्षा कीजिए।
🎙️शर्मा बन्धु Sharma Bandhu