🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🫂🌍 

Ishq ke bazar me khud ko mitakar dekh le

Yar khud mauzood hai parda hatakar dekhle


तेरे हुस्न  पे  दुःख   ये  तमाम  रंग-ए-आलम,

तेरी सादगी पे कुर्बान, ये  तमाम  जगमगाहट।

तेरी नाज-ए-दिलबरी पे मेरे सौ नियाज़ कुर्बान,

मेरी जिन्दगी की कीमत  तेरी एक मुस्कराहट॥


तेरी  तलाश  में  अपने  सिवा  कहाँ  जाऊँ,

यह एक राह मिली है, हर एक राह के बाद।

काबा जाना भी तो बुतखाने से होकर जाना

क्यूंकि इस राह से अल्लाह का घर दूर नहीं॥ 


तमाम रूप  से  अफजल  हूँ  मैं चुनिंदा हूँ,

जनाब-ए-पीर  मुशर्द  का  खास  बन्दा  हूँ।

मेरी  उड़ान  पर  जिबरील  को भी हैरत है, 

खुदा को नाज है जिस पर मैं वो परिन्दा हूँ॥


हालात से जहान की वाकिफ हुआ तो क्या,

जाना ना जाने जां को तो तू जानता है क्या।

वो  देखता  है  उसको  कोई  देखता  नहीं, 

अरे जो देखते को देखा नहीं देखता है क्या॥


इश्क के बाज़ार में खुद को मिटाकर देख ले।

यार खुद है मौजूद है, परदा हटाकर देख ले॥


इश्क़  की   दीवानगी   कर   गई   कितने   मकान,

अक्ल जिस मंजिल पे थे अब भी उसी मंजिल पे है।


इश्क़ करने से  वहेदत का  मज़ा मिलता है।

इश्क़ सच्चा हो तो बन्दे को खुदा मिलता है॥


इश्क  शाहों  से  ना  छूटा  ना  गदा  से  छूटा।

अरे हमसे क्या छूटेगा जब ये ना खुदा से छूटा॥


जूस्तजू करता है क्या, दैर-ओ-हरम में यार की।

अपने दिल में इश्क़ की शम्मा जलाकर देख ले॥


मर्ज़ी-ए-यार में खालिक की रजा को देखा।

हमने मुर्शिद की निगाहों से खुदा को देखा॥


बहरताजी गर्दन झुका दी है वहीं हमने जबीं

जिस  घड़ी  यार  का  नक्शा  पैमां  देखा॥


पड़  गई  मुझ  पर  मेरे  पीर की एक नज़र।

मेरी नज़रों ने हर एक शिम्त खुदा को देखा॥


खलक की सूरत में खालिक का पता मौजूद है।

हूँ तो  मैं बन्दा  मगर  मुझमें  खुदा  मौजूद है॥

वारिस-ए-मंसूर हूँ  मैं  मुफ्तियों  सुन लो जरा।

मेरी रग रग में  अनलहक की  सदा  मौजूद है॥


चश्में भी ना हो तो वाहिद देख ले आकर इधर

मुर्शिद-ए-कामिल की आँखों में खुदा मौजूद है।

साहिर-बातिन भी मैं हूँ अव्वलो आखिर भी मैं 

मुझसे हर एकदा  हर  इक  इन्तहा मौजूद है॥


अरे जो है बेपीर समझ में क्या उसकी आएगा।

यार एक  हर  रंग  में  है  हर जगह मौजूद है॥


राज-ए-हस्ती सस जहद में एक आन में खुल जाएगा

मन्न अर्फ़  के  राज  को, खुद ही में पाकर देख ले॥


कौन अल्लाह कौन बन्दा कौन शैतान है यहाँ।

पर्दा-ए-गफलत जरा ग़ाफ़िल उठाकर देख ले॥


पंजतन अल्लाह नबी कलमें के है हर तार में।

नफ्स के हर तार को दम में बजाकर देख ले॥


मान-ए-बैयत के यही है बेच दे अपनी खुदी 

हो जा मारूफ-ए-हक हस्ती मिटाकर देख ले॥


पीर के कदमों में रहना है उरूज़ ए बंदगी।

हर अदा से पीर मारूफ़ को मनाकर देख ले॥

🚩जय श्री गुरु महाराज जी की🙏🏻