🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Aho nar neeko hai hari nam Dadu Dayal 168
अहो नर नीका है हरि नाम।
दूजा नहीं नाम बिन नीका, कहले केवल राम॥
निर्मल सदा एक अविनाशी अजर अकल रस ऐसा।
दृढ़ गह राख मूल मन मांहीं निरख देख निज कैसा॥
यह रस मीठा महा अमीरस, अमर अनुपम पीवै।
राता रहै प्रेम सौ माता, ऐसे जुग जुग जीवै॥
दूजा नहीं और को ऐसा, गुरु अंजन कर सूझै।
दादू मोटे भाग हमारे, दास विवेकी बूझै॥
नाम महिमा कह रहे हैं- हे नर! कल्याण के साधनों में हरि-नाम ही श्रेष्ठ है, जिसमें सब का सम अधिकार हो, ऐसे नाम को छोड़कर अन्य कोई भी साधन श्रेष्ठ नहीं है। अतः तू एक मात्र राम-नाम का ही चिन्तन कर। जो सदा निर्मल, अद्वैत, अविनाशी, अजर, कला विभाग से रहित, ऐसा ब्रह्म रस है, वही तेरा मूल है, उसी का नाम मन में दृढ़ता से रख और विचार द्वारा उसका निरीक्षण करते हुये अपने स्वरूप को भी देख कैसा है? यह नाम चिन्तन रूप अमृत-रस महान् मधुर है, जो इसका पान करता है और प्रेम से अनुरक्त रहते हुये मस्त रहता है, वह अमर अनुपम ब्रह्मरूप होकर प्रति युग में ऐसे जीवित रहता है कि उसके समान कोई भी नहीं रहता। नाम के समान श्रेष्ठ और सुगम अन्य साधन कोई भी नहीं है, किन्तु नाम की यथार्थ महिमा गुरु ज्ञानांजन को वृत्ति-नेत्र में आंजने से ही दीखती है, विवेकी भक्त ही उसे समझ पाता है। हरि-गुरु कृपा से ही हमारी समझ में आया है, अतः हमारा भाग्य महान् है।