🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂 

Ajhu na nikse pran kathor Dadu Dayal 06

अजहुँ न निकसे प्राण कठोर।

दर्शन बिना बहुत दिन बीते, सुन्दर  प्रीतम  मोर॥ 


चार  पहर  चारों  युग  बीते, रैनि  गमाई  भोर।

अवधि गई अजहूँ नहिं आये कतहुँ रहे चितचोर॥


कबहुँ नैन निरख नहिं देखे, मारग चितवत तोर।

दादू  ऐसे  आतुर  विरहणि, जैसे  चन्द  चकोर॥


आश्चर्य पूर्वक व्याकुलता दिखा रहे हैं- मेरे मनोहर प्रियतम परमात्मा के दर्शन बिना जीवन के बहुत-से दिन व्यतीत हो गये किन्तु ये कठोर प्राण अब भी शरीर से बाहर नहीं निकलते। आयु-रात्रि के शिशु, किशोर, युवा, वृद्धावस्था रूप चारों पहर चार युगों के समान व्यतीत हुये हैं और अब अति वृद्धावस्था रूप अरुणोदय हो रहा है। उनकी अवधि थी- "अहंकार गलित होने पर दर्शन देंगे।" सो भी चली गई है अर्थात् अहंकार गलित हो चुका है, किन्तु अभी भी नहीं आये। वे भक्तों के चित्त को चुराने वाले कहां रुक रहे हैं, पता नहीं। हे प्रभो! हम सतत् आपका मार्ग देख रहे हैं किन्तु इस प्रकार देखते रहने पर भी, हम कभी भी आपको नेत्रों से नहीं देख सके हैं। अतः आपके दर्शनार्थ हम वियोगी जन ऐसे व्याकुल हैं, जैसे चन्द्र दर्शन के लिये चकोर ।