🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Akhil Brahmandma Ek Tu Shri Hari
नरसी जी का नाम सुनते ही कान खड़े हो जाते हैं, जैसे शब्द सुनकर हिरण विभोर हो जाता है। यह भजन किस राग है यह तो आप उनका नाम देखकर ही समझ गए होंगे कि उनकी सबसे प्रिय पसंदीदा राग कौनसी थी! आइए अब उनका अद्वैत सिद्धांत सुनकर कानों में अमृत घोलते हैं...
अखिल ब्रह्मांडमां एक तुं श्रीहरि,
जूजवे (अनेक) रूपे अनन्त भासे॥
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में केवल आप ही हैं; आप ही अनेक रूप में प्रकट होते हैं, विविध रूप धारण करते हैं। सर्व खल्विदं ब्रह्म। सर्वं वासुदेवमिति।
देहमां देव तुं, तेजमां तत्व तुं,
शून्यमां शब्द थई वेद वासे...
आप ही देह में परमदेव हो, आप ही प्रकाश के तत्त्व हैं, आप शून्य में वेदों के शब्द हैं।
पवन तुं पाणी तुं भूमि तुं भूधरा,
वृक्ष थई फूली रह्यो आकाशे...
आप वायु, जल, पृथ्वी हैं। हे प्रभु, आप वृक्षों में ऊँचे स्थान पर फैले हुए हैं।
विविध रचना करी अनेक रस लेवाने,
शिव थकी जीव थयो एज आशे...
इस प्रकार एक सत्ता से अनेक रूपों और विविध स्वादों की रचना करके आप अनेक हो गए हैं।
पूरे ब्रह्मांड यानी देह, तेज, वाणी, पवन, पानी, पृथ्वी, वृक्ष, इत्यादि चराचर सृष्टि अलग अलग दिखाते सभी में एक ही परमतत्त्व (ईश्वर) विद्यमान है।
वेद तो एम वदे श्रुति-स्मृति साख दे
कनक कुण्डल विषे भेद न्होये...
वेद घोषित करते हैं और अन्य शास्त्र साक्षी हैं कि सोने की डली और सोने की बाली में कोई अंतर नहीं है।
घाट घडिया पछी नामरूप जूजवां
अंते तो हेमनुं हेम होये..
वेद और स्मृति का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि अनेक प्रकार के स्वर्ण आभूषण होते हैं, लेकिन उसमें एक ही तत्त्व होता है, वह है स्वर्ण। ऐसे ही सभी के रूप अलग-अलग है, पर उसमें एक ही ईश्वर विद्यमान है।
वृक्षमां बीज तुं बीजमां वृक्ष तुं,
जोउं पटंतरो एज पासे...
आप वृक्ष में बीज हैं और आप बीज से वृक्ष है। यह बताता है कि जब दोनों को करीब से देखते हैं, तो आप पाएंगे कि वे मूल रूप से एक ही चीज़ हैं। कार्य कभी कारण से अलग नहीं होता बल्कि कारण रूप ही होता है।
भणे नरसैंयो ए मन तणी शोधना,
प्रीत करूं प्रेमथी प्रगट थाशे...
नरसईयो कहते हैं: मन तन को शुद्ध करके साधना करो। यदि मैं सच्ची श्रद्धा से भक्ति करूँ तो आप वैसे ही प्रकट होंगे जैसे आप हैं। हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रकट होहिं मैं जाना।
राग केदार Raag Kedar