🕉️🎯👌🏻 श्री हरिपुरुषाय नमः 🌍🫂
आदि गुरु शंकराचार्य के अपने गुरु गोविन्दपाद से सर्वप्रथम भेंट के अवसर पर उनके गुरु ने उनसे कहा की तुम्हारा परिचय क्या है, तू कौन हो ?
इस पर जो बाल शंकर ने उत्तर दिया वही निर्वाण षट्कम् के नाम से विख्यात है ।
आदि शंकराचार्य द्वारा लिखित एक सुन्दर रचना है, जिसमें ज्ञान की स्थिति, परमार्थिक सत्य को बहुत ही सुन्दरता के साथ वर्णन किया गया है ।
सहज और सरल प्रवाहपूर्ण संस्कृत ने इस रचना में निमग्न कर दिया था मुझे, बस पढ़ने के लिए ही हिन्दी में लिखे गए इसके अर्थों को थोड़ी सजावट देकर आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
विश्वप्रसिद्ध, आवाज के जादूगर, भारत रत्न सम्मानित, आज के तानसेन, सङ्गीत सम्राट पण्डित जसराज की 90 वर्ष की आयु में भी उनकी अद्भुत रोमांचक गायकी मंत्रमुग्ध करने वाली थी ।
(सातों महाद्वीपों में प्रस्तुति देने वाले प्रथम भारतीय कलाकार)
आइए सुनते है उनके मुख से हजारों साल पहले आद्य जगद्गुरु शंकरचार्य द्वारा रचित संस्कृत में निर्वाण षट्कम् आज भी श्रोताओं को मुग्ध कर देता है। यह हमें राग व रंगों से परे के आयाम में ले जाता है...✍🏻🎻🎻
Nirvan Shatkam Adi Shankara
Chidanandah Roopah Shivoham
मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं,
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे।
न च व्योमभूमि र्न तेजो न वायुः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥
न च प्राणसंज्ञो न वै पञ्चवायुः,
न वा सप्तधातु-र्न वा पञ्चकोशा।
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायु,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥
न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ,
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं,
न मंत्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः,
पिता नैव मे नैव माता न जन्म।
न बन्धु र्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो,
विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।
सदा मे समत्वं न मुक्ति र्न बन्धः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥
मन बुद्धि चित्त अहंकार हूँ नहीं,
कान जीभ आँख नाक चमड़ी नहीं।
न पानी हवा आग आकाश धरा,
सच्चिदानंद मैं शिव शिव शिववरा॥
नहीं सात धातु न प्राण पञ्चवायु,
न पञ्चकोश हाथ पैर मुँह उपायु।
इन्द्रिय नहीं कोई मैं सदा सोय,
चिदानन्दरूप मैं और नहि कोय॥
नहि मैं राग-द्वेष लोभ-मोह नहीं,
नशा नहीं मुझमें जलन नहीं कहीं।
धर्म अर्थ काम मोक्ष का ना वहम,
चिदानन्दरूप शिवोऽहं शिवोऽहं॥
नहीं पाप-पुण्य मैं सुख-दुःख नहीं,
न मन्त्र न तीर्थ वेद यज्ञ हूँ नहीं।
न भोजनभोज्यभोक्ता त्रिपुटी नहीं,
सोऽहं शिवोऽहं नित्य सत्य मैं ही॥
न मृत्यु का भय न जाति का भेद,
माता ना पिता ना जन्म नहि लेत।
भाई ना मीत ना गुरु-शिष्य नाहिं,
चिदानन्दरूप सदा स्वरूप माहिं॥
निर्विकल्प हूँ निराकार रूप मैं,
व्याप्त सभी जगह और इन्द्रियों में।
सदा सम मुक्ति न बंध नहीं मुझमें,
चिदानन्दरूप शिवोऽहं शिव मैं॥
आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य निर्वाण षट्कम्
परावाणी Para Vaani
🚩जय श्री गुरु महाराज जी की🙏🏻
🎙️पं० जसराज Pandit Jasraj
राग दरबारी कान्हड़ा Darbaari Kanhra
ताल अद्धा तीनताल Addha Teentaal