🕉️श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂

मन की मन ही मांहि रही।

ना हरि भजे न तीर्थ सेवे, 

चोट  काल  की  गही॥

Manre Kaun Kumati Te Linhi


मन रे! कौन कुमति ते लीन्ही।

परदारा  निंदिया  रस  रचियो,

राम भक्ति ना कीन्ही॥

मुक्त  पन्थ   जानियो  ते  नाहीं,

धन जोरन को धाया।

अन्त  संग   काहू  नहीं  दीन्हा,

बिरथा आप बँधाया॥


ना हर भज्यो ना गुरजन सेव्यो,

ना उपजियो कछु ज्ञाना।

घट  ही  मांही  निरञ्जन  तेरे,

ते   खोजत   उद्याना॥


बहुत जन्म भरमत ते हारियो,

स्थिर मति नहीं पाई।

मानुष देह पाए पद हर भज,

'नानक' बात बताई॥


गुरबानी नानक सबद Gurbaani Nanak Shabad 

निरंजनी अद्वैत आश्रम, भाँवती