🕉️श्री हरिपुरुषाय नमः🌍

Kaisi Ye Hori Machai

कैसी (ये) होरी  मचाई ! कन्हाई।

अचरज    लखियो   ना   जाई॥


एक समय श्री कृष्णचन्द्र को, 

होरी खेलें मन आई।

एक से होरी मचे नहिं कबहुँ, 

याते  करूँ  बहुताई।

येही प्रभु  ने ठहराई॥


पाँच भूत की  धातु मिलाकर, 

पिण्ड पिचकारी बनाई।

चौदहभुवन रंग भीतर भरके, 

नाना     रूप     धराई।

प्रकट भये कृष्ण कन्हाई॥


पाँच विषय की  गुलाल  बनाके, 

बीच   ब्रह्माण्ड   उड़ाई।

जिन जिन नैन गुलाल पड़ी वह, 

सुध बुध  सब बिसराई।

नहीं  सूझत  अपनाहि॥


ब्रह्मज्ञान  अंजन  की  सलाका, 

जिसने  नैनन   में  पायी।

'ब्रह्मानन्द'  तिसका तम नास्यो, 

सूझ    पड़ी    अपनाहि।

भ्रम  की   धूल   उड़ाई॥

और कछु बनी न बनाई॥


ब्रह्मानन्द भजन Brahmanand bhajan

🚩जय श्री गुरु महाराज जी की🚩