🕉️🎯👌🏻श्री हरिपुरुषाय नमः🌍🫂
Ab Main Naachyo Bahut Gopaal
अब मैं नाच्यौ बहुत गोपाल।
काम-क्रोध को पहन चोलना,
कण्ठ विषय की माल॥
महामोह के नूपुर बाजत,
निन्दा सबद रसाल।
भ्रम-भयो मन भयो पखावज,
चलत कुसङ्ग की चाल॥
तृष्णा नाद करत घट भीतर,
नाना विधि दै ताल।
माया को कटि फेंटा बाँध्यौ,
लोभ-तिलक दै भाल॥
कोटिकला काछि दिखाई
जल-थल सुधि नहिं काल।
सूरदास की सबै अविद्या,
दूरि करो नन्दलाल॥
इस पद में सूरदास जी ने माया-तृष्णा में लिपटे मनुष्य की व्यथा का सजीव चित्रण किया है। हे गोपाल ! अब मैं बहुत नाच चुका। सूरदास कहते हैं; हे मेरे आराध्य! अब मैं इस संसार के आवागमन के चक्कर में बहुत नाच लिया। इस जन्म मरण चक्र से अब मुझे मुक्त कर दो। जीव रूप में मैंने बहुत कष्ट उठाया है। अब अपने चरणों में रखके मुझे संसार के बन्धनों से मुक्त करो।
काम-क्रोध को पहन चोलना, कण्ठ विषय की माल ॥
काम और क्रोध का वस्त्र पहनकर, विषय (चिन्तन) की माला गले में डालकर अर्थात् ये वृत्तियाँ ही मेरी पहचान बन गई। इन्द्रियों के विषयों में ही मैं आसक्त रहा। अर्थ और काम बस इसी से शोभित हुआ। संसार में मेरी बाहरी वृत्तियाँ ही प्रगट होती रहीं। इन्हीं की कण्ठी पहने रहा मैं।
तृष्णा नाद करत घट भीतर, नाना विधि दै ताल।
अनेक प्रकार की ताल देती हुई तृष्णा हृदय के भीतर नाद (ध्वनि) कर रही है। मैं उसी सङ्गीत में डूबा रहा उसे ही नाद (मधुर ध्वनि) समझ बैठा।
भ्रम-भयो मन भयो पखावज, चलत कुसङ्ग की चाल ॥
भ्रम (अज्ञान) से भ्रमित मन ही पखावज (मृदङ्ग) बना। मन कुसङ्ग रूपी चाल ही चलता रहा।
माया को कटि फेंटा बाँध्यौ, लोभ-तिलक दै भाल ॥
कमर में माया का फेटा (कमरपट्टा) बाँध रखा है और ललाट पर लोभ का तिलक लगा लिया है।
महामोह के नूपुर पहरै, निन्दा सबद रसाल।
महामोहरूपी नूपुर बजाता हुआ, जिनसे निन्दा का रसमय शब्द निकलता है (महामोहग्रस्त होने से निन्दा करने में ही सुख मिलता रहा), नाचता रहा। जैसे सङ्गीत की गोष्ठी होती है उसमें नूपुर बाँध के नर्तक नर्तकी नाचते हैं, ऐसे ही महामोह के नूपुर मेरे पैरों की गति बनकर मुझे नचाते रहे। मोह ही मेरे जीवन का आकर्षण बना रहा। जहाँ-जहाँ मेरा मोह था बस वहीं वहीं की मैंने बात सुनी। लोगों की निंदा ही मुझे रसीले गीतों-सी लगी।
कोटिकला काछि दिखाई जल-थल सुधि नहिं काल।
जल और स्थल में (विविध) स्वाँग धारणकर (अनेकों प्रकार से जन्म लेकर) कितने समय से यह तो मुझे स्मरण नहीं (अनादि काल से) करोड़ों कलाएँ मैंने भली प्रकार दिखलायी हैं (अनेक प्रकार के कर्म करता रहा हूँ)।
सूरदास की सबै अविद्या, दूरि करो नन्दलाल ॥
हे नन्दलाल ! अब तो सूरदास की सभी अविद्या (सारा अज्ञान) दूर कर दो। माया के वशीभूत मनुष्य की स्थिति का इस पद के माध्यम से सूरदास जी ने साङ्गोपाङ्ग चित्रण किया है। सांसारिक प्रपञ्चों में पड़कर लक्ष्य से भटके जीवों का एकमात्र सहारा परमात्मा ही है।
सूरदास भजन Soordas Bhajan
🚩श्री निरंजनी अद्वैत सेवा संस्थान, भाँवती🥀
🎙️तिलक गोस्वामी Tilak Goswami
🎙️रतन मोहन शर्मा Ratan Mohan Sharma